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________________ तथा ४ था सम्यक्त्व का गुणस्थान भी जीव साथ में ले जा सकता है। इस जन्म का सम्यग् दृष्टि जीव मृत्यु पाकर जहाँ जाय वहाँ जन्म लेते ही तुरंत सम्यक्त्वी ही रहे । स्वर्ग से तीर्थंकर का जीव यदि वहाँ से मृत्यु पाकर उतर कर मनुष्य की गति में आकर जन्म ले तो पुनः सीधा ही सम्यक्त्वी बनता है । और क्षायिक सम्यक्त्वी जीव भी यदि यहाँ से मृत्यु पाकर स्वर्ग में जाय तो वह भी सम्यक्त्व का चौथा गुणस्थान लेकर जाता है । वहाँ जन्मते ही सीधा सम्यक्त्वी बनता है । क्षायिक सम्यक्त्व की स्थिति उत्कृष्ट से ६६ सागरोपम काल की निर्दिष्ट है । 1 I बस, ये १, २ और ४ तीन ही गुणस्थान जन्मान्तर में अगले भव में साथ जाते हैं बस, इनके सिवाय अन्य शेष ११ गुणस्थानों में से कोई भी गुणस्थान अगले जन्म में जन्मान्तर में साथ नहीं जाते हैं । जैसे कोई व्रतधारी श्रावक या साधु मरकर पुनः तुरंत अगले जन्म में व्रती या दीक्षित साधु नहीं बनता है । परन्तु मिथ्यात्वी या सम्यक्त्वी बन सकता है । ये भावात्मक-अध्यवसायात्मक है । प्रायः प्रधानता मिथ्यात्व और सम्यक्त्व की रहती है । इनमें ९८% मात्रा मिथ्यात्व की ही ज्यादा सविशेष रहती है । सम्यक्त्व की मात्रा तो १% भी नहीं रहती। क्योंकि संसार में सम्यक्त्वी जीव है ही कितने ? समस्त संसार की चारों गतियों में अनन्तगुने जीव मिथ्यात्वी हैं, उसके सामने, उनकी तुलना में उनके सिर्फ अनन्तवे भाग के ही जीव सम्यक्त्वधारी हैं। इन सम्यक्त्वियों में भी क्षायिक सम्यक्त्वी तो मुश्किल से गिनती के होंगे ? अतः मिथ्यात्व को जन्मान्तर में साथ ले जाना और जन्मते ही मिथ्यात्वी बना रहना सामान्य बात है । जबकि सम्यक्त्व के विषय में बहुत मुश्किल है । इस तरह गुणस्थानों के विषय में काफी विचारणा की । अब संक्षिप्त से तालिकाओं द्वारा भी कई बातें गुणस्थान के विषय में समझी जा सकती हैं। ११८२ ***** आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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