________________
७ वे गुणस्थान का काल-जघन्य १ समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। ८ वे गुणस्थान का काल-जघन्य १ समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। ९ वे गुणस्थान का काल-जघन्य १ समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। १० वे गुणस्थान का काल-जघन्य १ समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । ११ वे गुणस्थान का काल-जघन्य १ समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। १२ वे गुणस्थान का काल-जघन्य और उत्कृष्ट दोनों अन्तर्मुहूर्त है। १३ वे गुणस्थान का काल-जघन्य १ अंतर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से .
देशोन पूर्व क्रोड वर्ष का है। १४ वे गुणस्थान का काल जघन्य अंतर्मुहूर्त ५ ह्रस्वाक्षरोच्चार मात्र काल रहता है। इस तरह १४ गुणस्थान का जो काल निर्देश यहाँ किया है उनमें सबसे बडा काल १,४, ५, ६, और १३ इन पाँच गुणस्थानों पर ही लम्बा रहता है । शेष तो छोटी कालावधिवाले ही होते हैं। परभव में कौन से गुणस्थान साथ जाते हैं ?
मरणप्रायोग्य ११ गुणस्थान हैं । १, २, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १०, ११ और १४ ये ग्यारह गुणस्थान मरणप्रायोग्य है । अर्थात् इन पर मृत्यु पाता है और मरकर अन्य गति में अगले जन्म में जीव जाता है । मृत्यु पाकर अगले जन्म में जाते समय कौन से गुणस्थान साथ जाते हैं? उसके बारे में शास्त्रकार महर्षी फरमाते हैं कि...१ ला मिथ्यात्व का गुणस्थान जीवों के साथ मृत्यु के पश्चात् जाता है । अर्थात् इस जन्म में तो मिथ्यात्वी है ही
और मृत्यु पाकर अगले दूसरे जन्म में जहाँ जाता है वहाँ पुनः जन्मजात मिथ्यात्वी ही रहेगा।
दूसरा सास्वादन गुणस्थान भी मृत्यु के समय साथ जा सकता है । यद्यपि काल तो उत्कृष्ट से ६ आवलिका मात्र का ही है । आवलिका में तो समय असंख्य बीत जाते हैं। जबकि... मुत्यु पाकर जीव को दूसरी गति में जाने का बीच का काल १, २, ३, ४,५ समय मात्र का मुश्किल से लगता है । बीच का अवग्रह काल या विहायोगति का काल वह मात्र इतने समयों का ही होता है। इतने से समयों के काल के सामने आवलिका का काल तो काफी लम्बा–बडा है । अतः इस गुणस्थान में रहा हुआ कोई जीव मृत्यु पाए तो इस गुणस्थान को साथ ले जा सकता है । अन्यथा नहीं जाय ऐसा निश्चित नियम नहीं है। लेकिन ले जा सकता है।
क्षपकश्रेणि के साधक का आगे प्रयाण
११८१