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________________ होता है । तथा सास्वादन दूसरे गुणस्थान की तरह १४७ कर्मप्रकृतियों की सत्तावाला जीव ३ रे मिश्र गुणस्थान पर होता है। ___ इस तीसरे गुणस्थान का पूरा नाम “सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान” है । किन्तु संक्षेप में दोनों का सम्मिलित स्वरूप लेकर मिश्रगुणस्थान नाम ही प्रचलित हो चुका है। शुद्धि-अशुद्धि का स्वरूप दर्शन मोहनीय कर्म सर्वथा अशुद्ध मैले गंदे, पानी और कपडे आदि के जैसा आधा शुद्ध, और आधा साफ स्वच्छ शुद्ध अशुद्ध ऐसा अर्धशुद्ध जैसा कपडे या पानी जैसा मिथ्यात्व मोहनीय मिश्र मोझीय कर्म सम्य त्व मोहनीय कर्म कर्म शास्त्र में मोहनीय कर्म के दर्शन मोहनीय की ३ प्रकृतियाँ जो बताई उनको उपरोक्त चित्रानुसार क्रमशः १) अशुद्ध, २) अर्धशुद्ध और ३) शुद्ध प्रकार की है। अतः १) मिथ्यात्व मोह की प्रकृति बिल्कुल अमावस्या के काले अंधेरे के जैसी श्याम, या काले मसौते के जैसा मटमैला कपडा, या गटर-नाले का गंदे पानी के जैसी है । वैसे आत्मा पर लगे हुए दर्शन मोहनीय के पुद्गल परमाणु जो सर्वथा अशुद्ध ही हैं इनको मिथ्यात्व मोहनीय कर्म कहते हैं । ये आत्मा मोक्षादि किसी भी तत्त्व को नाम मात्र भी शुद्ध स्वरूप में मानने के लिए तैयार ही नहीं है। _ जिसमें आधे शुद्ध और आधे अशुद्ध रखे हो उन्हें मिश्र कहते हैं । यही मिश्र मोहनीय कर्म है। तीसरा बिल्कुल साफ, स्वच्छ, सुंदर, स्पष्ट है । उसे चाहे कपडे की या पानी की जिस किसी की भी उपमा दो वह सम्यक्त्व मो० कर्म है । इसमें आत्मा, मोक्ष आदि पदार्थों की श्रद्धा स्पष्ट साफ है । क्रमशः अशुद्ध १ ले गुणस्थानवर्ती मिथ्यात्व है। २ दूसरी क्षपकश्रेणि के साधक का आगे प्रयाण ११६९
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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