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________________ व्यवहार करेंगे या दिन कहकर? इसके लिए एक शब्द कहाँ से लाना जो दोनों का सूचक-वाचक हो? अतःन होने से प्रातःकाल अरुणोदय काल नामका व्यवहार भाषा के प्रयोग में किया जाता है। यहाँ पर भी वैसी ही मिश्रावस्था है। दूसरा दृष्टान्त इस प्रकार है जात्यन्तरसमुद्भतिर्वडवाखरयोर्यथा। गुडदनोः समायोगे, रसभेदान्तरं यथा ॥१४॥ तथा धर्मद्वये श्रद्धा, जायते समबुद्धितः । मिश्रोऽसौ भण्यते तस्माद्भावो जात्यन्तरात्मकः ।। १५ ॥ संसार में आपने घोडा और गधा दोनों प्राणियों को देखा ही है। घोडे-घोडी नर-मादा के संयोग से पुनः घोडा या घोडी ही पैदा होगा उसी की परंपरा चलती रहती है। इसी तरह गधे-गधी की भी परंपरा चलती ही है। लेकिन गधी के साथ यदि घोडा, या घोडी के साथ यदि गधा इस तरह विजातीय संबंध होने के आधार पर जो बच्चा पैदा होगा वह न तो घोडा होगा और न ही गधा होगा । परन्तु एक नवीन जाती ही पैदा होगी। जिसे खच्चर कहते हैं। . तीसरा एक और दृष्टान्त देखिए... खाते समय मुंह में एक साथ ही गुड और दहीं दोनों रखकर देखिए। फिर देखिए किसका स्वाद आता है ? क्या स्पष्ट गुडका आएगा या स्पष्ट दही का आएगा? जी नहीं । दोनों की मिश्रावस्था का अलग ही किसम का स्वाद आएगा। ये तो समझने के लिए दृष्टान्त दिये हैं। ठीक उसी तरह जिस जीव की बुद्धि सर्वज्ञभाषित सत्य धर्म और असर्वज्ञ-छास्थ भाषित मिथ्याधर्म दोनों में समान बुद्धिवाली बनती है वह जीव एक नए प्रकार की ही विचारधारावाला बनता है उसे मिश्रगुणस्थानवाला कहते हैं । वह स्पष्ट रूप से न तो सत्य धर्म की विचारणा-या श्रद्धावाला है और न ही गाढ मिथ्यात्वधारक असत्य धर्म की श्रद्धावाला है। इस तरह जब दोनों की स्पष्ट मान्यतावाला नहीं है तब वह दोनों की मिश्र मान्यतावाला कहलाता है। स्पष्ट मिथ्यात्व की मान्यता १ ले मिथ्यात्व के गुणस्थान पर होती है और स्पष्ट सच्ची सर्वज्ञभाषित तत्त्व की श्रद्धा ४ थे गुणस्थान पर होती है। अतः ऐसा कहा जा सकता है कि तीसरे गुणस्थानवाला जीव १ + ४ की दोनों गुणस्थान की मिश्रित मान्यतावाला है । शास्त्रकार महर्षी फरमाते हैं कि ११६६ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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