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तथा ध्याता के आत्मिक परिणामविशेष का भी पतन होता ही नहीं है । अतः ऐसे ध्यान की स्थिरता को व्युपरतक्रियानिवृत्ति या समुच्छिन्नक्रियाऽप्रतिपाति कहते हैं। ___ इस तरह शुक्लध्यान के इन ४ प्रकारों में प्रथम के २ प्रकार छदस्थ के हैं जो अभी १३ वे गुणस्थान पर नहीं पहुँचा है । लेकिन श्रेणी में है । अतः श्रेणीगत साधक शुक्लध्यान का आलंबन लेता है। या ७ वे अप्रमत्त गुणस्थान पर भी शुक्लध्यान बताया है। इसी तरह ६ 8 गुणस्थान पर यद्यपि प्रमत्त साधु है फिर भी उसके अतिचारों में शुक्ल ध्यान न ध्याने पर दोष (अतिचार) लगते हैं ऐसा कहा है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि छठे प्रमत्त साधु को भी शुक्लध्यान का अधिकारी तो बताया ही है । पूर्वधरपना तो छठे गुणस्थान के प्रमत्त साधु में भी संभव है । १४ पूर्व का या १ पूर्व का या उससे कम ज्ञान भी छ8 गुणस्थानवर्ती साधु को हो सकता है । होता भी है । अतः वह शुक्लध्यान का साधक बन सकता है । वर्तमान युग में पूर्व का ज्ञान तो नहीं है, क्योंकि पूर्व ही विच्छेद हो चुके हैं। अतः पूर्व के ज्ञानी कोई है ही नहीं । लेकिन द्वादशांगी जो उपलब्ध हो, १२ में से ११ अंग जो उपलब्ध है उनका तथा ४५ आगम सर्व है उनका ज्ञान जीवों को उपलब्ध है । अतः उस ज्ञान के बल पर साधक शुक्ल ध्यान की साधना कर सकता है । वह भी मात्र प्रथम के २ चरण की ही। आगे का तीसरा-चौथा तो वैसे भी संभव ही नहीं है।
प्राणायामक्रमप्रौढिरत्र रूढ्यैव दर्शिता।
क्षपकस्य यतः श्रेण्यारोहे भावो हि कारणम् ॥ ५९॥ . यद्यपि...गुणस्थान क्रमारोह ग्रन्थकार ने पूरक, कुम्भक और रेचक की प्राणायाम की प्रक्रिया काफी विस्तार से बताई है। साथ ही योगशास्त्र जैसे ग्रन्थ में पू. हेमचन्द्राचार्यजी ने... पवनजय से मनोजय की प्रक्रिया बताई है। शरीर में ८४ प्रकार के वायु हैं । उनमें भी आन-व्यान-उदान-समान-अपान नामक ५ प्राण मुख्य हैं । कहाँ रहते है ? ये पाँचों प्राण शरीर के भिन्न-भिन्न स्थानों में स्थित होते हैं । इन पर योगी नियंत्रण कर सकते हैं। शरीर में जो आनापान की प्रक्रिया निरंतर-अखण्ड रूप से चल ही रही है। अनैच्छिक रूप से भी यह क्रिया अखण्डरूप से चलती ही रहती है। इसे सीढी बनाकर मन यदि चढ-उतर करे तो भी मन को साधा जा सकता है । ऐसे अनेक प्रयोग हैं, प्रक्रिया हैं, जिसके माध्यम से साधक मन को साधकर आगे बढ़ सकता है। इस तरह चित्त की स्थिरता, एकाग्रता साधने में प्राणायाम की प्रक्रिया उपयोगी-सहायक बनती है।
परन्तु यहाँ क्षपकश्रेणी के साधक के लिए जो ८ वे गुणस्थान अपूर्वकरण से श्रेणी के श्रीगणेश करके कर्मों का क्षय करके आगे बढता है उसके लिए तो प्राणायाम आदि
क्षपकश्रेणि के साधक का आगे प्रयाण
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