________________
शुक्लध्यान के ४ भेदों में जो प्रयुक्त शब्द हैं उनके अर्थ इस प्रकार समझने चाहिएपृथक्त्व = अनेकत्वम् ध्यान करने की विविधता, भिन्नता । वितर्कः = श्रुतचिन्ता । १४ पूर्वगत श्रुतज्ञान का चिन्तन । विचारः = संक्रम = परमाणु आत्मादि पदार्थं, इनके वाचक शब्द तथा कायिकादि योग, इनमें विचरण संचरण तथा संक्रमण । विचार अर्थात् = अर्थ, व्यंजन एवं योगों के संक्रमण का नाम विचार है । एक अर्थ-पदार्थ से दूसरे की प्राप्ति होना अर्थसंक्रान्ति है। एक व्यञ्जन से दूसरे व्यंजन में प्राप्त होकर स्थिर होना यह व्यञ्जनसंक्रान्ति है। इसी तरह एक योग से योगान्तर में संक्रान्त करना यह योगसंक्रान्ति
___ इस ध्यान में अर्थादिक के पलटने का तात्पर्य यह है कि ... श्रुतस्कंध अर्थात् द्वादशांगीशास्त्ररूप महासमुद्र में से एक अर्थ को लेकर उनका ध्यान करता हुआ दूसरे अर्थ को प्राप्त होता है । यह ध्यान एक शब्द से दूसरे शब्द, तथा एक योग से दूसरे योग पर जाता है । इसलिए सविचार सवितर्क कहते हैं। ___पहला सविचार सवितर्क पथक्त्व कहा है। जबकि दूसरा भेद एकत्व अविचार वितर्क कहते हैं । सविचार से अविचार विपरीत–विरुद्ध है । पृथक्त्व से एकत्व सर्वथा विरुद्ध है । प्रथम प्रकार में विचार है । जबकि दूसरे में विचाररहित स्थिति है। १) पृथक्त्व-वितर्क सविचार
पृथक्त्व अर्थात् भिन्नता, अनेकपना, वितर्क अर्थात् पूर्वगतश्रुत, और विचार अर्थात् द्रव्य-पर्याय की, अर्थ-शब्द की, तथा मनादि योगों की संक्रान्ति परावर्तन । विचार सहित को सविचार कहते हैं । इस तरह इन तीनों शब्दों से ३ हकीकतें समझनी चाहिएपृथक्त्व से भेद, वितर्क से पूर्वगतश्रुत, और सविचार से द्रव्य–पर्यायादि का परिवर्तन । जिस ध्यान में पूर्वगतश्रुत के आधार पर आत्मादि किसी भी एक द्रव्य के आश्रय से उत्पादादि पर्यायों का एकाग्रतापूर्वक भेद-प्रधान, द्रव्य–पर्याय के भेदपूर्वक चिन्तन करना । द्रव्यपर्यायादि का जो परावर्तन होता है । उसे पृथक्त्ववितर्क सविचार नामक शुक्लध्यान का प्रथम भेद कहते हैं । इस प्रकार के ध्यान में १४ पूर्व शास्त्रों के अभ्यासी पूर्वधर महात्मा पूर्वगत श्रुत के आधार पर, आत्मा, परमाणु आदि अनेक द्रव्यों में से किसी एक द्रव्य का आश्रय करके विविध नयों के अनुसार उत्पाद-व्यय-धौव्य, मूर्त-अमूर्त, नित्य-अनित्य, आदि पर्यायों का भेद रूपसे चिन्तन करता है । इसमें एक द्रव्य से अन्य द्रव्य एक पर्याय से अन्य पर्याय का आलंबन लेता है । शब्द से अर्थ, अर्थ से पुनः शब्द
क्षपकश्रेणि के साधक का आगे प्रयाण
११४३