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________________ ध्यान के विभाग में ४ धर्मध्यान के भेद हैं। और वे पूरे होने के पश्चात् शुक्लध्यान की साधना शुरू होती है । शुक्लध्यान के चार-चरणों में २ चरण के बाद आगे कैवल्य की प्राप्ति हो जाती है । और शेष दूसरे २ चरण के बाद तो मुक्ति भी हो जाती है । इस तरह कैवल्य और मुक्तिप्रदाता शुक्लध्यान का अद्भुत अनोखा स्वरूप शास्त्रकार महर्षियों ने काफी उच्च कक्षा का लिखा है । स्थानांग आगम में शुक्लध्यान के भेद दर्शाते हुए इस प्रकार स्वरूप लिखा है“सुक्के झाणे चउव्विहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते - तंजहा १) पुहुत्त - वियक्के सवियारी, २) गत्त विक्के अवियारी, ३) सुहुम किरिए अणियट्टी, ४) समुच्छिन्न किरिए अप्पदिवाई ॥ ठाणांग ४/१/१२ शुक्लध्यान ४ प्रकार का कहा गया है १) पृथक्त्व वितर्क सविचार, २) एकत्व वितर्क अविचार ३) सूक्ष्म क्रिया अनिवृत्ति, ४) समुच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाती । इन ४ भंगों में से प्रथम के २ भंग छद्मस्थ के लिए होते हैं और शेष २ भंग सर्वज्ञ केवली को होते हैं। क्योंकि प्रथम के २ भेद श्रुतज्ञानाश्रित हैं अतः वे दोनों ही अवितर्क होते हैं। इनमें भी प्रथम भेद विचार सहित सविचार है और दूसरा विचारशून्य अविचार कक्षा का है । परन्तु दोनों में आलंबन तो श्रुतज्ञान का ही है । शेष दो, ३ और ४ थे में नहीं है । ध्यानंविचार ग्रन्थ में द्रव्य और भाव ध्यान ऐसा वर्गीकरण करके आर्त- रौद्र ध्यान की गणना द्रव्य ध्यान में की है। जबकि ४ प्रकारवाले धर्मध्यान की गणना भाव ध्यान में है, और शुक्ल ध्यान को तो परम ध्यान बताया है। ध्यान दीपिका ग्रन्थकार ने भी यही बात पुष्ट की है शुक्लं चतुर्विधं ध्यानं, तत्राद्य द्वे च शुक्लके । छद्मस्थयोगिनां ज्ञेये द्वे चान्त्ये सर्ववेदिनाम् ।। १९५ ।। शुक्लध्यान के ४ प्रकार होते हैं । उनमें से प्रथम २ भेद छद्मस्थ योगियों के होते हैं और शेष २ भेद सर्वज्ञों के होते हैं । ज्ञानार्णव में शुभचन्द्रजी कहते हैं— जो निष्क्रिय अर्थात् क्रियारहित है, इन्द्रियातीत तथा ध्यान की धारणा से भी रहित है, अर्थात् “मैं इसका ध्यान करूँ” ऐसी इच्छा से रहित है अर्थात् सहजभाव से जो ध्यान होता है, जिसमें चित्त अन्तर्मुख अर्थात् स्वात्मस्वरूप में सन्निहित है उसे शुक्ल ध्यान कहते हैं । ४२/४ 1 ११४२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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