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________________ एकादशं गुणस्थानं, क्षपकस्य न संभवेत् । कन्तुं स सूक्ष्मलोभांशान्, क्षपयन् द्वादशं व्रजेत् ॥ ७३ ॥ क्षपक मुनि क्षपक श्रेणी में ११ वां उपशान्त मोह गुणस्थान का स्पर्श भी नहीं करता है । वह १० वे गुणस्थान से छलांग लगाकर सीधे ही १२ वे गुणस्थान पर चला जाता है । १० वे गुणस्थान पर सूक्ष्म लोभ के अंशों का क्षय करता हुआ सीधे ही १२ वे गुणस्थान पर चला जाता है । ११ वाँ गुणस्थान निश्चित रूप से सिर्फ... उपशम श्रेणीवाले के लिये ही है । इसी तरह १२ वाँ और आगे के सिर्फ क्षपक श्रेणी के लिये निश्चितरूप से हैं । अतः उपशम श्रेणीवाला साधक १२ वे गुणस्थान पर कभी भी ... कदापि आ ही नहीं सकता है और क्षपक श्रेणीवाला कभी भी ... कदापि ११ वे गुणस्थान पर जा ही नहीं सकता है । यह नियम निश्चित ही है । सदा के लिए अपरिवर्तनशील नियम है । उपशमश्रेणी में पतन निश्चित है और क्षपक श्रेणी में चढते हुए मोक्ष की प्राप्ति अन्त में निश्चित ही है । 1 क्षपक श्रेणी प्रारम्भ करनेवाले का सर्व प्रथम संकल्प ही यह रहता है कि... किसी भी तरह कर्मक्षय करके ही आगे बढना है । यह जलते हुए अंगारों पर राख नहीं अपितु पानी डालकर सर्वथा आग बुझाकर ही पैर रखकर निश्चिन्त होकर चलता है । मैले पानी को अच्छी तरह छानकर, फिर उबालकर बाष्पीभवन करके ही ग्रहण करता है । ठीक वैसे ही साधना के क्षेत्र में कर्मप्रकृतियों को जडमूल में से क्षय करके ही आगे बढता है । उपशमवाले की तरह नहीं । कर्मप्रकृति का क्षय हो जाय तो ही विश्वास करना, नहीं तो नहीं । क्षपक श्रेणी ११४० अपूर्व अनिवृत्ति उपशान्त मोह १० सू. संपराय सयोगी क्षीण मोह १२ ११ अयोगी १३ १४ ८ वे गुणस्थान से क्षपक श्रेणी प्रारम्भ कर मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का क्षय करके एक एक गुणस्थान आगे बढता हुआ ऊपर चढता है। नौंवे से १० वे आकर अब आगे आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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