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सकता है कि सप्तलव अवशिष्ट काल में ही मोक्ष को प्राप्त कर ले। इस तरह उपशम श्रेणीवाला जीव भी उसी भव में मोक्ष में जा सकता है।
जो दीर्घायुषी-लम्बे आयुष्यवाला जीव उपशमश्रेणी का प्रारंभ करता है वह श्रेणी को खंडित नहीं करता, पूरी तरह ११ वे गुणस्थान पर्यन्त चढता है । ११ वे उपशान्त मोह गुणस्थान पर चारित्र मोहनीय कर्म को सर्वथा उपशान्त कर देता है । परन्तु सत्ता में दबाकर रखी हुई कर्मप्रकृतियाँ उसे वहाँ से ऊपर नहीं चढने देती है । उस योगी को वहाँ से मोहनीय कर्म की प्रकृति जो सुषुप्त थी पुनः उदित होकर जोरकर के नीचे पतन करा देती है । कितनी प्रबल-बलवत्तर होती है मोहनीय कर्म की प्रकृति? ।
यद्यपि कर्मप्रकृतियाँ उदयावलिका में से शान्त हो जानेपर आत्मा को निर्मलीकरण का एहसास जरूर होता है परन्तु उदय में पुनः जोर से आने पर छक्के छूट जाते हैं । यदि उपशम श्रेणीवाले महात्मा की आयु पूर्ण हो जाय और वह यदि श्रेणी के अन्तर्गत ही मृत्यु पा जाय तो निश्चित ही सर्वोच्च कक्षा का देव जन्म प्राप्त करता है । जो एकावतारी बनकर मोक्ष में जाता है । परन्तु ११ वे गुणस्थान से नीचे गिरते-गिरते यदि मानों क्रमशः१ ले मिथ्यात्व के गुणस्थान पर आ जाय तो... तो फिर संसार की नीच हल्की गतियों में परिभ्रमण करते रहना पडता है । यदि ११ वे से पतित होकर ७ वे गुणस्थान पर आकर गिरे,रुके और यदि आयुष्य शेष हो तथा क्षपक श्रेणी का प्रारंभ कर दे तो तो फिर मोक्षगमन भी उसी जन्म में हो जाय । फिर तो जन्मान्तर या परिभ्रमण का सवाल ही खडा नहीं हो सकता। संसार चक्र में-उपशम श्रेणी कितनी बार?
आसंसारे चतुर्वारमेवस्याच्छमनावली।
जीवस्यैकंभवे वारद्वयं सा यदिजायते ।। ४६ ।। गुणस्थानक्रमारोहकार कहते हैं कि- अनादि-सान्त संसार काल पर्यन्त जीव को उपशम श्रेणी अधिक से अधिक ४ बार प्राप्त हो सकती है । बस, इससे ज्यादा संभव ही नहीं है । अर्थात् जब तक जीव मोक्ष में न जाय तब तक के संसार चक्र में परिभ्रमण काल में यदि श्रेणी प्रारंभ करे तो उपशम श्रेणी अधिक से अधिक ४ बार ही प्राप्त कर सकता है। यदि एक जन्म में उत्कृष्ट रूप से अधिक से अधिक उपशम श्रेणी का आरोहण करे तो २ बार कर सकता है। ज्यादा नहीं। प्रायः तो एक बार ही करते हैं। फिर भी अधिक से अधिक के विषय में २ बार का विधान शास्त्रकार महर्षि करते हैं
क्षपकश्रेणि के माधक का आगे प्रयाण
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