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________________ जलते हुए अंगारों पर यह क्षपक वृत्तिवाला साधक....राख के बदले पानी डालता है । पानी आग का विरोधि तत्त्व है, अतः पानी पडते ही निश्चित रूप से आग जडमूल से बुझ ही जाएगी। बस, फिर तो आप निश्चिन्त हैं । अब चाहे अंधेरे में आँख मूंदकर भी चलते हो और यदि सिगडी या रास्ते में पडे अंगारों पर पैर-गिर जाय, या हाथ लग जाय या बच्चा गिर जाय तो भी आपको बिल्कुल ही चिन्ता करने का सवाल ही खडा नहीं होता है। ठीक ऐसा ही क्षपक वृत्तिवाला साधक होता है । वह जब आध्यात्मिक विकास के एक एक सोपान पर अग्रसर होता है तब...उस उस गुणस्थान के घातक जो जो भी कर्म रहते हैं उनका जडमूल से क्षय-नाश करके ही चढता है । इसलिए निश्चिन्त रहता है। निश्चिन्तता इस बात से है कि फिर पीछे किसी भी कर्म प्रकृति का उदय होने की कोई चिन्ता ही नहीं रहती है। और इसके कारण क्षपकश्रेणिवाला साधक अन्तिम मुक्ति की प्राप्ति की सिद्धि होने तक निरंतर-सतत बिना पतन के अन्त तक आगे बढ़ता ही जाता है। और अन्त में मोक्ष को पाकर ही रहता है। श्रेणी नियम ७वे अप्रमत्त गुणस्थान के बाद आठवे से आगे आत्म विकास की दो श्रेणियाँ होती हैं। अतः ८ वे से आगे के सभी गुणस्थानों की पहचान श्रेणी के आधार पर ही होती है। “शमको ही शमश्रेणिं, क्षपकः क्षपकावलीम् ॥” कर्मों का शमन करनेवाला शमक उपशमश्रेणी, और कर्मों का जडमूल से क्षय करनेवाला क्षपक.. क्षपकश्रेणी पर आरूढ होते हुए आगे-आगे के गुणस्थानों पर आगे बढेगा। अतः ८, ९ और १० वे इन तीनों गुणस्थानों की पहचान तो दोनों श्रेणियों में होती है । अतः दोनों श्रेणीवाले इन ३ गुणस्थानों पर चलते हैं । चढते हैं। लेकिन इनके आगे ११ वाँ गुणस्थान सिर्फ उपशम श्रेणी का ही गिना जाता है । अतः नियम ही है कि... उपशमश्रेणी वाला साधक सीधे क्रम से अयोगी १४ ११ वें गुणस्थान पर ही जाएगा। बस, उससे आगे कभी भी नहीं जाएगा। श्रेणी का शुभारंभ कर शमक साधक ८ वे से नौंवे होकर १० वे गुणस्थान पर सपक श्रेणी उपशान्त मोह क्षपकश्रेणि के साधक का आगे प्रयाण ११२३
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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