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________________ तत्रापूर्वगुणस्थानाद्यांशादेवाधिरोहति । शमको हि शमश्रेणि क्षपकः क्षपकावलीम् ।। ३९ ।। उपशम श्रेणी क्षपक श्रेणी आठवें गुणस्थान पर आरूढ होनेवाले जीव दो प्रकार के होते हैं- १) उपशमक तथा २) दूसरा क्षपक-आत्मिक विकास यात्रा की दिशा में आगे बढनेवाला साधक योगी जो मोह कर्म के संस्कारों को शमाता-दबाता जाता है और आगे बढ़ने में जल्दबाजी करता है। करते-करते मोहनीय कर्म की सर्व प्रकृतियों का उपशमन कर देता है । वह उपशामक साधक कहलाता है । बस, कर्म प्रकृतियों को शमाने-शान्त करने-दबाने पर ही विश्वास रख लिया..: कि हाँ, अब अपना काम हो गया। दूसरा जीव ठीक इसकी विपरीत वृत्तिवाला है। इसको भी आध्यात्मिक विकास यात्रा में आगे ही बढना है । अतः दोनों प्रकार के साधकों का लक्ष्य एक जैसे-समान है। परन्तु दोनों की वृत्ति स्वभाव में अन्तर है । यह क्षपक साधक-मोहनीय कर्म की समस्त प्रकृतियों का जड मूल से समूल नाश-क्षय करता है, फिर ही विश्वास करता है । इसके बिना आगे ही नहीं बढता है। दोनों साधक हैं। दोनों आत्मा का विकास-अभ्युदय साधनेवाले साधक हैं । लेकिन... मात्र स्वभाव और प्रवृत्ति की प्रक्रिया में ही अन्तर है। एक शामक न दबानेवाला है तो दूसरा क्षपक–क्षय करने के लक्ष्यवाला है। ___अंगारो पर अंगारो पर राख पाणी पानी डालकर डालकर आग छिपाना आग बुझाना ११२० आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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