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________________ शेष सातों कर्मों का बंध होता है । आठों कर्मों का वेदन करना पडता है । तथा आठों कर्मों का इस गुणस्थान पर उदय भी होता ही है । मोहनीय और आयुष्य कर्म इन दो की उदीरणा नहीं होती है । शेष ६ कर्मों की उदीरणा होती है । निर्जरा का तो सवाल ही नहीं है। आठों कर्मों की निर्जरा होती है । पाँच प्रकार के भावों में से उपशम श्रेणीवाले जीव के ५ तथा क्षपक श्रेणीवाले जीव के ४ भाव होते हैं । बंध हेतुओं के विषय में मिथ्यात्व और अविरति तथा प्रमाद के बंध हेतु तो यहाँ है ही नहीं। इसलिए इनका तो सवाल ही खडा नहीं होता है। शेष दो कषाय और योग ये बंध हेतु अभी उपस्थित हैं । ८ वे अपूर्व करण गुणस्थान में संज्वलन की कक्षा के क्रोधादि चारों कषाय स्थूल की कक्षा के हैं। तथा मन-वचन-काया के योग भी है ही, जो बंध हेतु का काम करते ही हैं । २२ परीषह उसे सहन करने ही पडते हैं। वैसे १५ योग में से ८ योग होते हैं । उपयोग १२ में से ७ होते . हैं। इनमें ४ ज्ञान के तथा ३ दर्शन के होते हैं, ७ वे गुणस्थान की तरह । चौथे गुणस्थान पर ६ में से सिर्फ १ शुक्ल लेश्या ही होती है । ५ प्रकार के सामायिक में से सामायिक और छेदोपस्थापनीय होते हैं । तथा समकित भी उपशम और क्षायिक दो ही होते हैं। इस तरह प्रवचन सारोद्धार ग्रन्थ में कहा है कि . . . . “अपूर्व-अभिनवं करणं-स्थितिघात, रसघात, गुणश्रेणी, गुणसंक्रम, स्थितिबंधानां पंचानां पदार्थानां निर्वर्तनं यस्यासौ अपूर्वकरणः" अभिनव पाँच पदार्थों के निर्वर्तन को “अपूर्वकरण" कहते हैं । ये पाँच पदार्थ अपूर्व स्थितिघात, अपूर्व रसघात, अपूर्व गुणश्रेणी, अपूर्व गुणसंग्रह और अपूर्व स्थितिबंध हैं । इनसे निर्वर्तन है। श्रेणी के श्रीगणेश अयोग संयोगी १३ क्षीण मोह १२ क्षपक श्रेणी उपशान्त मोहा सपशा ( अनिवत्ति ९ अपूर्व ) AMIONIOR - उपशम श्रेणी क्षपकश्रेणि के साधक का आगे प्रयाण १११९
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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