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________________ ३) उद्वर्तनाकरण - ४) अपवर्तनाकरण संक्रमकरण के पश्चात् उद्वर्तना तथा अपवर्तनाकरण होता है। ये दोनों शब्द परस्पर विरोधी गुणवाले विरुद्ध शब्द हैं। उद्वर्तना में शुभ कर्मों की रस और स्थिति में वृद्धि होती है, उसे उद्वर्तना कहते हैं। और अशुभ कर्मों की स्थिति तथा रस में हानि होती है, उसे अपवर्तना कहते हैं । अतः उद्वर्तना और अपवर्तना ये दोनों स्थिति और अनुभाग अर्थात् रस के विषयभूत हैं। उनमें स्थिति हो तो ही अनुभाग रस का संभव होने से प्रथम स्थिति की उद्वर्तना - अपवर्तना कही है। उसके पश्चात् रस की कही है। आत्मा के अपने पुरुषार्थ द्वारा स्थिति और रस की वृद्धि होती है उसे स्थिति और रस की उर्तना कहते हैं। अतः उद्वर्तना का विषय प्रकृति- प्रदेश नहीं परन्तु रस और स्थिति है। प्रकृतिबंध तथा प्रदेशबंध में किसी प्रकार की वृद्धि - हानि नहीं होती है । अर्थात् उद्वर्तना- अपवर्तना नहीं होता है। मात्र रस और स्थिति में ही होती है। ५) उदीरणाकरण जं करणेणो कड्डिय दिज्जइ उदए उदीरणा एा । पगलिडितियाइ चहा मूलुत्तरभेयओ दुविहा ॥ १ ॥ जिस करण द्वारा कर्मदलिक खींचकर उदय में लाए जाते हैं उसे उदीरणाकरण कहते हैं । अर्थात् कषाययुक्त या रहित जिस आत्मबीर्य की प्रवृत्ति के द्वारा उदयावलिका की बहिर्वर्ती - ऊपर के स्थानकों में रहे हुए कर्माणुओं को खींचकर उदयावलिका में लाया जाय उनका उदयावलिका में प्रक्षेप होता है अर्थात् उदयावलिका स्थान में रहे हुए दलिकों के साथ भोगे जाय वैसे किये जाते हैं उसे उदीरणाकरण कहते हैं। उस प्रकार की उदीरणा प्रकृति, स्थिति, रस, प्रदेश इन चारों के कारण चार प्रकार की है, जिनका नामकरण इस प्रकार कीया जाता है— १) प्रकृत्बुदीरणा, २) स्थित्युदीरणा, ३) रसोदीरणा ( अनुभागोदीरणा) और ४) प्रदेशोदीरणा । ये चारों मूल प्रकृतियों के तथा उत्तरप्रकृतियों के भेद से दो प्रकार के हैं। मूल कर्म प्रकृतियाँ ८ 'अतः आठ प्रकार से, और उत्तर कर्म प्रकृतियाँ १५८ प्रकार से हैं अतः १५८ भेद से हैं। I ६) उपशमनाकरण देवसमणा सव्वाण होइ सवोवसामणा मोहे । अपसत्या पसत्था जा करणुवसमणाए अहिगारो ॥ १ ॥ क्षपकश्रेणि के साधक का आगे प्रयाण ११०९
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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