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________________ ८) संवर भावना आश्रव यह कर्म विषयक भावना है तो इसी की औषध समान संवर भावना है। जहाज में छिद्र में से आते हुए पानी को देखकर अब उसे कैसे रोकना ताकि जहाज डूब न जाय-बचाना, इसी तरह डूबती आत्मा को कैसे बचाना इसके लिए संवर भावना चिन्तवनी चाहिए। इसमें कर्म के सामने रक्षक एक मात्र धर्म ही है। अतः समिति-गुप्ति-परीषहजय, यति धर्म क्षमादि १० गुणों का चिंतन, १२ भावनाओं का चिंतन-आचरण, चारित्र धर्म तपधर्म आदि संवर कारक धर्मों का चिंतन-मनन करना चाहिए । धर्म का स्वरूप कैसा है? किस प्रकार का है ? इत्यादि सोच समझकर आचरण करे ताकि आश्रव मार्ग से आनेवाले कर्मों से स्वयं बच सके । संवर भावना का यही हेतु है कि आश्रव से बचने का उपाय ख्याल में आ जाय । संवर धर्म ही कल्याणकारक है। ८) निर्जरा भावना क्रमशः आगे बढती हुई भावना के क्षेत्र में आश्रव में कर्म, संवर में धर्म तथा निर्जरा में धर्म का फल, परिणाम देखना है । आचरण में लाए हुए समस्त प्रकार के धर्म से कितने कर्मों का क्षय हुआ? कितने प्रमाण में कर्म कट रहे हैं, निर्जरित होते हुए आत्म प्रदेश से कर्माणु = कार्मणवर्गणा दूर हो रही है ? और उतनी ही आत्मा शुद्ध होती है । अतः आत्म शुद्धीकरण का आधार निर्जरा पर है । बाह्य ६ तथा आभ्यन्तर ६ ऐसे १२ प्रकार के तप भेदों से निर्जरा साध्य बताई है । ऐसा मत समझिए कि कर्म अनादि है इसलिए अनन्त है। जी नहीं । सान्त है । अन्त हो सकता है । कर्मक्षय साध्य है । आत्मा की संपूर्ण शुद्धि संभव है ध्यान-स्वाध्यायादि निर्जराकारक है। अरे ! धर्म के समस्त प्रकार निर्जराकारक हैं। छोटा से बड़ा कोई एक भी भेद धर्म का निर्जरा न करा सके वैसा है ही नहीं । अतः अच्छी तरह निर्जरा हो सकती है। साध्य है। इस तरह का चिन्तन इस भावना में करके वैसे लक्ष्यवाला मानस तथा भाव बनाकर ही धर्म करना चाहिए । यही इस भावना का साध्य १०) लोक स्वभाव भावना इस भावना में चिन्तक समग्र लोक क्षेत्र का चिन्तन करता है । समग्र ब्रह्माण्डरूप लोक संस्थान लोकस्थ समस्त पदार्थों, वस्तुओं, पुद्गलों, तथा जीवों पर चिन्तन करता है। इसी लोक का एक अंशभूत यह जीव थोडा ऊपर उठकर साक्षीभाव से दृष्टा बनकर स्वयं ध्यान साधना से "आध्यात्मिक विकास" १०८७
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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