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________________ 1 I इस लोक-जगत् को अपने ज्ञान का विषय बनाए। जी हाँ, संसार भावना और लोक भावना में आसमान - जमीन का अन्तर है। संसार भावना में कषायादि जन्य राग-द्वेषात्मक कर्मात्मक स्थिति का दुःखात्मकादि स्वरूप देखना है । जबकि इस लोक भावना में... भौगोलिक स्थिति के साथ द्रव्यों पदार्थों की स्थिति-स्वरूप तथा पदार्थों का अपना गुणधर्म स्वभावादि देखना है । ऊर्ध्वलोक स्वर्ग रूप है, अधोलोक नरक रूप है, तब मध्य- तिर्छालोक मनुष्य तथा तिर्यंच क्षेत्र है । इनमें देव - नारक, मनुष्य तथा तिर्यंचादि जीवों का निवास है । चेतन-अचेतन जड पदार्थादि अनन्त पदार्थ हैं अनन्त जीव हैं । अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु हैं। संघात - विघात से परिवर्तन स्कंध - परमाणु में होता ही रहता है । निगोद से एकेन्द्रिय के पृथ्वी - पानी - अग्नि — वायु - वनस्पति तथा चिटी-मकोडे, मक्खी-मच्छर, हाथी-घोडे आदि समस्त प्रकार के अनन्त जीवों की स्थिति का स्वरूप तथा जड - अजीवादि पदार्थों का स्वरूप देखें । नरकादि में वहाँ की पृथ्वियों की स्वाभाविक स्थिति देखें । शाश्वत पदार्थों का भावात्मक स्वभाव स्वरूप देखें । उत्पाद - व्यय- धौव्यात्मक द्रव्य - गुण - पर्याय का स्वरूप देखें । इस तरह लोक स्वरूप का चिन्तन इस भावना में करे ... ताकि आगे संस्थानविचय ध्यान करने में स्थिरता आ 1 सके। ११) बोधिदुर्लभ भावना - ८४ लक्ष योनियों में जन्म-मरण धारण करते हुए संसार चक्र में परिभ्रमण करते हुए चारों गतियों तथा पाँचों जातियों में जन्म लेते हुए जीवों को मनुष्य गति, धर्मी कुल, साधु महात्माओं का सत्संग, धर्मश्रवण, धर्मश्रद्धा, धर्माचरणादि क्रमशः काफी दुर्लभ है । बोधि अर्थात् आत्मबोध, जिन धर्म-आत्मधर्म की प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है । मोक्ष का बोध होना और उसके अनुरूप मोक्षप्रापक धर्म की प्राप्ति होना अत्यन्त दुर्लभ है । उस प्रकार के आत्मधर्म की आचरणा करते हुए भी कर्म निर्जरा करना सर्वथा दुर्लभ है। जिनोक्त दया–दान—शियल-तप- भावनादि प्रकार के धर्म की अत्यन्त दुर्लभता रूप इस भावना चिंतवनी चाहिए । इस भावना के चिन्तन से आत्मा को धर्म का सही स्वरूप ख्याल में आ सके । रुचि - जिज्ञासा जागे । १२) धर्मस्वाख्यात भावना बोधि दुर्लभ में ऐसे धर्म की प्राप्ति की दुर्लभता की बात थी और इस धर्मस्वाख्यात भावना में सर्वज्ञ भगवंतों के द्वारा प्रकाशित धर्म स्वरूप को बार बार चितवन करना है । आध्यात्मिक विकास यात्रा १०८८
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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