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________________ ४ थे प्रकार में प्राप्त होती है । ध्याता, ध्येय और ध्यान सबकी एकात्मकता, अभेदावस्था समाधिभाव है। इस तरह अष्टांग योग की अद्भुत-अनोखी प्रक्रिया है । पातंजलि ने योग दर्शन में निर्देश किया है उन सूत्रों पर महामहोपाध्यायजी श्री यशोविजयजी म. की सुंदर टीका है। उसका पठन–मनन साधकों को अवश्यरूप से करना ही चाहिए । अष्टांग योग का सुंदर शुद्धस्वरूप समझकर एक-एक अंग को समझकर क्रमशः प्रथम-प्रथम अंग को अच्छी तरह पूर्ण स्वरूप से स्वीकार करके, जीवन में उतारकर फिर आगे-आगे के अंगों में प्रवेश करना चाहिए। योगांग ८ और ८ दृष्टियों की समानता पहले जिनका वर्णन कर चुके हैं उन आठ दृष्टियों की जैन योग साहित्य में विशेष महिमा वर्णित की गई है। यहाँ दृष्टि शब्द आत्मा के ज्ञान प्रकाश-बोध की सूचक है। अतः पारिभाषिक शब्दप्रयोग निर्धारित अर्थ में है । इन ८ दृष्टियों को अष्टांग योग के ८ भेदों के साथ तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने पर काफी अच्छी समानता दिखाई देती है। निम्न तालिका बाकी है ।से समझना आसान रहेगा। पभा ध्यान परा कांता धारणा स्थरा प्राणाया। ८ दृष्टियां बला दीप्रा प्रयास मित्रा तारा नय पस+ योगांग ध्यान साधना से "आध्यात्मिक विकास १०७७
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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