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________________ संज्ञि पंचेन्द्रिय मनुष्यों को ५ इन्द्रियाँ मिली है । इन ५ इन्द्रियों से मन सर्वथा भिन्न अलग से अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखता है। अतः यह अतीन्द्रिय है। पाँचों इन्द्रियाँ जो अपने २३ विषय वर्ण-गंध-रस-स्पर्श-शब्द को ग्रहण करती है मन उनमें आसक्त बनकर भौरे की तरह रसास्वाद करता रहता है। ऐसे मन को इन्द्रियों के समग्र विषयों से हटाकर स्वस्वरूप में रममाण कराना, कछुए की तरह इन्द्रियों का गोपन करना, रागद्वेषादि भावों से रहित होकर समभाव को प्राप्त करनेपूर्वक ध्यानतंत्र में स्थिरस्वरूपना ही प्रत्याहार ६) धारणा ध्येयवस्तुनि संलीनं यन्मनोजैविधीयते। परब्रह्मात्मरूपे वा गुणिनां सद्गुणेष्वपि ।। १०३ ॥ अर्हदाद्यंगरूपं वा, भाले नेत्रे मुखे तथा। लये लग्नं मनो यस्य धारणा तरस्य संमता ।। १०४ ॥ . ध्यान करनेलायक केन्द्र, आलंबनभूत आधार परब्रह्मरूप आत्मस्वरूप परमात्मस्वरूप,उनके गुण गुणी पुरुषों के सद्गुणों तथा अरिहंतादि पंच परमेष्ठियों के विषय में अथवा साधक स्वयं अपने ही ललाट-आज्ञा चक्र, नेत्रयुग्म, मुखकमल, चक्रों भ्रूमध्य, नाभी, हृदयकमल, नासाग्रदृष्टि आदि स्थानों-केन्द्रों पर अपने मन को लीन करे, लय करे उसे धारणा कहते हैं । इसे ध्यानस्थान कहते हैं। ७) ध्यान स्वरूप-. (ध्यान की व्याख्या तथा काफी विचारणा पहले कर चुके हैं वहाँ से समझने का प्रयत्न करें।) ८) समाधि या धारणाया विषये च प्रत्ययैकतानताऽन्तःकरणस्य तन्मयम्। ध्यानं समाधिः पुनरेतदेव हि स्वरूपमात्रप्रतिभासन मतः ॥३/१२८ ॥ ध्यान जब स्वरूपमात्रनिर्भास की स्थिति में पहुँचता है तब उसे समाधि कहते हैं। ध्यान में ध्यानाकार वृत्ति होती है । उससे नष्ट होते ही वह ध्यान विशेषदर्शक “समाधि" के नाम से पहचाना जाता है । परम और चरम समाधि की अवस्था शुक्लध्यान के ३ रे, आध्यात्मिक विकास यात्रा १०७६
SR No.002484
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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