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संवर के आचरण का पालन करता हुआ होना चाहिए। यदि पाप के आश्रवों के ४२ प्रकारों का सेवन प्रतिदिन करके जीव अनेक कर्म बांधता है, बांध सकता है, तो फिर संवरधर्म का पालन करके लगते हुए पापों से क्यों नहीं बच सकता? अवश्य ही बच सकता है । अतः संवररूप धर्म का पालन प्रतिदिन नियमित रूप से करना ही चाहिए । समिति आदि का पालन प्रतिदिन संभव है। संवर अधिकांश विरतिरूप है। जिसमें सामायिकादि का समावेश होता है । अतः समस्त धर्म संवरप्रधान है । पापनिरोधक है। ३) निर्जरालक्षी धर्म
- संवर निर्जरा का कारण हैं। और निर्जरा संवर के बाद का कार्य है। संवर वर्तमानकाललक्षी है। जबकि निर्जरा भूतकाललक्षी है। इनके कार्य का काल वह है। वर्तमान काल में जो पाप कर्म हो रहे हैं, किये जा रहे हैं, उन्हें रोकने का काम संवर का है। जबकि पापों को लगने से न रोकने के कारण आज दिन तक भूतकाल में जो अनेक कर्म बांध चुके हैं... उन सब कर्मों का क्षय-नाश करने के लिए निर्जरा तत्त्व है । निर्जरा जितनी प्रबल-सशक्त की जाय उतनी ज्यादा मात्रा में कर्मों का क्षय होता है। ... निर्जरा के बारह प्रकार बताए गए हैं । छः बाह्य तप और छः आभ्यन्तर तप के । इस तरह कुल मिलाकर बारह प्रकारों से निर्जरा होती है। बाह्य प्रकार के छः तपों में... स्पष्ट रूप से सभी तप ही हैं । परन्तु आभ्यन्तर तप में सभी तपरूप नहीं है । सभी प्रकारों का समावेश उनमें हो जाता है । जैन धर्म के १) ज्ञानाचार, २) दर्शनाचार, ३) चारित्राचार, ४) तपाचार, और ५) वीर्याचार इन पाँचों प्रकार के आचारों के अंतर्गत सभी धर्मों का समावेश हो जाता है। धर्म के सभी प्रकार भिन्न-भिन्न तरीके ये पंचाचार के ही रूप हैं। ये सभी निर्जराकारक ही हैं। भले ही चाहे वह दर्शन करने का हो या प्रभु की पूजा-भक्ति हो ये सभी कर्मक्षयकारक हैं । भाव की विशुद्धिपूर्वक प्रभु प्रतिमा के दर्शन और भक्तिपूर्वक की जाती प्रभु-पूजा को यदि कर्मबंध का कारण माने, या पाप की प्रवृत्ति कहे तो समझिए वे स्वयं दुर्भाव-द्वेषभावपूर्वक कर्म बांधते हैं। कर्मक्षय-निर्जरा के प्रकारों को कर्मबंध या पाप का कारण माने तो निश्चित समझिए कि यह विपरीत मति मिथ्यात्वरूप है। ऐसा सोचने-बोलनेवाले स्वयं ही पापकर्म उपार्जन करते हैं। इसलिए कभी भी निर्जरा के साधनभूत कर्मक्षयकारक प्रभुदर्शन-पूजा–भक्ति को किसी भी तरह से, किसी भी दृष्टि से गलत कहना, या पाप कहना, या इसमें पाप-दोष लगता है ऐसा कहना या कर्म बंधानेवाला है ऐसा कहना सब अनुचित है । युक्तिसंगत नहीं है। सर्वथा विपरीत है।
कर्मक्षय- “संसार की सर्वोत्तम साधना"
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