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________________ ऐसी पाँच समितियाँ इस प्रकार है-- १) इर्यासमिति- मार्ग में जीवरक्षा का पालन करते हुए जयणा पूर्वक चलना-आना-जाना । २) भाषासमिति-बोलते हुए भी सुननेवाले किसी भी जीव को दुःख न हो, किसी के मन में दुःख होवे ऐसी भाषा भी बोलकर मानसिकी हिंसा भी न करना यह भाषा समिति है । विवेक पूर्वक बोलने आदि का व्यवहार करना । ३) एषणा समिति-साधु भिक्षा-गोचरी आदि के लिए आए-जाए ऐसी आहार की गवेषणा में भी दोषों के सेवन से बचे उसे एषणा समिति कहते हैं। ५) आदान-भंड-मत्त निक्खेवणा समिति-वस्तु-वस्त्र पात्रादि उपकरण भी जयणा पूर्वक रखना-लेना-उठाना-आदि की क्रिया करे जिसमें किसी भी जीव की हिंसा-विराधना न हो। ऐसी पाँच समितियों का शुद्ध पालन करना यह भी गुरु पद पर बिराजमान गुरु का आचार है । साथ ही मन-वचन और काया ये तीन जो योय हैं । इन योगों से प्रतिक्षण हम व्यवहार करते हैं । १) मन से सोचने-विचारने का, २) वचन योग से बोलने का भाषाकीय व्यवहार, ३) काया-शरीर से शारीरिक-कायिक व्यवहार । इन तीनों योगों के तीनों व्यवहार में सम्यग्पूर्वक अशुभ योगों का त्याग करने पूर्वक शुभ योगों की प्रवृत्ति करने को गुप्ति कहते हैं । “सम्यग् योग निरोधो गुप्ति" तत्त्वार्थ में ऐसा पाठ है। उपरोक्त पाँच समिति और तीन गप्ति मिलाकर आठ को “अष्टप्रवचन माता" कहा जाता है। श्री उत्तराध्ययन सूत्र आगम शास्त्र में— इन अष्टप्रवचन माता का २४ वें अध्ययन में विस्तृत वर्णन किया है। अटुप्पवयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य। पंचेव य समीइओ तओ गुत्तीउ अहिआ॥ जैसे एक माता अपने संतान को शिक्षा तथा संस्कारों से सुसंस्कारित करती है, उसे सभ्य बनाती हुई सब सीखाती है और इस तरह अपने संतान को सुयोग्य बनाती है । इस तरह मातृत्व का कर्तव्य निभाती है । ठीक इसी तरह वे पाँच समितियाँ और ३ गुप्तियाँ रूप अष्टप्रवचन माता नूतन दीक्षित मुनि को आचार धर्म सिखाना और सिखाकर उन्हें सुशिक्षित सुसभ्य सुयोग्य साधु बनाने का काम करती हैं। अतः इसे "माता" की उपमा दी गई है। ___इस तरह ५ इन्द्रिय संवरण + ९ ब्रह्मचर्य की वाड + ४ कषाय रहितता, = १८, + ५ महाव्रतयुक्त, + ५ पंचाचार पालन + ५ समिति + ३ गुप्ति धारण इस तरह ३६ साधना का साधल- आदर्श साधुजीवन ७२७
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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