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आगे बढता है । चौथे-पाँचवे गुणस्थानक पर श्रावक को पाँचवी स्थिरा दृष्टि की प्राधान्यता रहती है। आगे छट्टे-सातवें गुणस्थानक पर ... साधु के जीवन में स्थिरा दृष्टि तो आधारभूत रहती ही है । परन्तु आगे छट्ठी कान्ता दृष्टि खुलती है । सातवें अप्रमत्त गुणस्थान से कान्ता दृष्टि विशेष कार्यरत रहकर आत्मा को अप्रमत्त बनाती है । अप्रमत्त साधु सातवें गुणस्थानवाला परिणामों की विशुद्धि से कर्मक्षय के प्रमाण में तीव्रता लाकर जैसे ही आगे बढता है .... वैसे ही आठवाँ अपूर्वकरण गुणस्थानक पर चढता है- वहाँ प्रभा दृष्टि आती है । प्रभा दृष्टि काफी शुद्धतर कक्षा की है । यहाँ से ८ वें गुणस्थानवी जीव श्रेणि का श्रीगणेश करता है । ८ वें गुणस्थानक से क्रमशः आगे बढता हुआ..९ वां..१० वां .. १२ वां.. गुणस्थानक साधते हुए जीव अंतिम आठवीं परा दृष्टि में रहता है । अर्थात्
आठवीं परा दृष्टि आठवे गुणस्थानक से ही प्रारंभ होती जाती है और श्रेणी के मार्ग पर क्रमशः जीव आगे बढता है । ८ वें से ९ वें, १० वें, १२ वें से आगे १३ वें गुणस्थानक पर पहुंचकर जीव केवलज्ञान केवल दर्शन प्राप्तकर वीतरागी-सर्वज्ञ-सर्वदर्शी बनता है । यहाँ सर्वज्ञ प्रभु को भी ८ वीं परा दृष्टि रहती है । यह बहुत अच्छी-ऊँची..अप्रमत्तभाव की विकल्पादि रहित दृष्टि है । और अन्त में १४ वे गुणस्थान पर आकर आत्मा मुक्त हो जाती है । इस तरह १४ गुणस्थानों में ८ योग दृष्टियाँ, या ८ योग दृष्टियों में १४ गुणस्थान घटते हैं। ये साथ साथ चलते हैं । अतः गुणस्थान के सोपानों पर जैसे क्रमशःचढते-चढते आगे बढना है वैसे ही ८ दृष्टियों के क्रम में भी एक-एक सोपान आगे बढना ही लाभप्रद है। ८ दृष्टियों के पथ पर आध्यात्मिक विकास साधते हुए आगे बढना ही चाहिए। अष्टांग योग के साथ ८ दृष्टियों में जीव का विकास
८ दृष्टि | योगांग | दोष | गुण- | बोधप्रकाश उपमा विशेषता
त्याग |१] मित्रा दृष्टि | यम | स्वेद | अद्वेष तृणाग्नि प्रकाश मिथ्यात्व गुणस्थान |२| तारा दृष्टि | नियम | उद्वेग | जिज्ञासा |गोमय प्रकाश समान मिथ्यात्व गुणस्थान |३| बला दृष्टि | आसन | क्षेप | शुश्रूषा काष्ठाग्निप्रकाशसमान मिथ्यात्व गुणस्थान |४| दीपा दृष्टि | प्राणायाम | उत्थान | श्रवण दीपकप्रभा प्रकाशस० मिथ्यात्व गुणस्थान | ५] स्थिरा दृष्टि | प्रत्याहार | भ्रान्ति | बोध रत्नप्रभा प्रकाशसमान सम्यक्त्व गुणस्थान | ६/ कान्ता दृष्टि | धारणा | अन्यमुद् मीमांसा तारा प्रभा प्रकाशस. सम्यक्त्वसे आगेगु. ७. प्रभा दृष्टि | ध्यान | रोग प्रतिपत्ति सूर्यप्रकाश समान सम्यक्त्व से आगे गु. ८ परा दृष्टि | समाधि | आसंग | प्रवृत्ति चन्द्र प्रभा प्रकाशस० सम्यक्त्वसे आगे गु.
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आध्यात्मिक विकास यात्रा .