________________
(३) तीसरा कहता है पिताजी ! मैं न तो आपको मानूँगा और न ही आपका कहना मानूँगा।
(४) चौथा कहता है पिताजी ! मैं आपको भी मानूँगा और आपका कहना भी मानूँगा।
पाठकों ! आप ही सोचिए कि उपरोक्त चार प्रकार के पुत्रों में से कौन सा पुत्र अच्छा और योग्य है ? प्रथम या द्वितीय दोनों प्रकार के पुत्र जो कि एकान्ती एकपक्षीय मान्यता रखते हैं, उन्हें कैसे अच्छे मान सकते हैं ? जो पिता को न माने और उनकी आज्ञा को माने या आज्ञा को माने और पिता को न माने, वे दोनों ही अधूरी श्रद्धा वाले हैं। तीसरा पुत्र जो पिता और आज्ञा दोनों को ही मानने के लिए तैयार नहीं है, ऐसे तीनों प्रकार के पुत्र अयोग्य कहलाते हैं । पिता और आज्ञा दोनों को मानने वाला चौथा पुत्र ही योग्य कहलाएगा। यह तो व्यवहारिक क्षेत्र में पुत्र की बात हई, लेकिन आध्यात्मिक क्षेत्र में भक्त और भगवान के विषय में पुत्र की ही तरह चार भेद होते हैं
(१) एक प्रकार का भक्त वह होता है जो भगवान को मानता है परन्तु भगवान की आज्ञा नहीं मानता है।
' (२) दूसरा जो कि पहले का ठीक उल्टा है वह भगवान की आज्ञा को तो मानता है लेकिन भगवान को मानने के लिए तैयार नहीं है।
(३) तीसरा वह है जो महामिथ्यात्वी एवं नास्तिक हैं, वह भगवान और भगवान की • आज्ञा रूप धर्म दोनों को ही मानने के लिए तैयार नहीं है।
(४) चौथा परम श्रद्धालु एवं आस्तिक है जो भगवान को और भगवान की आज्ञा या धर्म दोनों को समश्रद्धा से मानता है। : ___इस प्रकार चार पुत्रों की तरह चार प्रकार के भक्त होते हैं। उनमें मात्र चौथे प्रकार का पुत्र या भक्त ही योग्यता वाला होता है, जो श्रद्धावान एवं आस्तिक होता है। अन्य तीनों प्रकार के पुत्र एवं भक्त अयोग्य-नास्तिक एवं अनाज्ञाकारी होते हैं । जिस तरह एक पिता उपरोक्त तीनों प्रकार के पुत्रों को पुत्र होते हुए भी अयोग्य मानते हैं और असन्तुष्ट रहते हैं, ठीक वैसे ही शास्त्र तीनों प्रकार के भक्तों (उपासकों) को अयोग्य ठहराता है । इन पुत्रों की तरह कई भक्त ऐसी विचारधारावाले होते हैं जो भगवान को मानते हुए भी भगवान की आज्ञारूप धर्म को नहीं मानते हैं, क्योंकि भगवान की आज्ञा रूप धर्म को मानना बहुत कठिन होता है जबकि भगवान को मानना बड़ा आसान है। भगवान को मानने में मात्र उनका स्वरूप जीवन चरित्र सुनकर या समझकर तथा चमत्कार जन्य निमित्तों की श्रद्धा से
सम्यक्त्व प्राप्ति का अद्भुत आनन्द
५४५