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________________ कागज जैसे जीव भ्रमवश मार्गभ्रष्ट हो जाते हैं। वे अज्ञान मूलक मिथ्यात्व की दिशा में चले जाते हैं । परिणास्वरूप सच्चे सम्यग् ज्ञान से वंचित रह जाते हैं । इसलिये- 'तमेव सच्चं नि:संकंजंजिणेहिंपवेइयं । की व्याख्या अवश्य स्वीकारनी चाहिये । “वही सत्य, निःशंक (शंका रहित) है जो सर्वज्ञ वीतरागी जिनेश्वर भगवान ने प्रतिपादित किया है। जो सर्वथा सत्य है उसी पर श्रद्धा रखनी चाहिए। इसी को सच्ची सम्यग् श्रद्धा मानेंगे। इसी आधार पर आत्मा से मोक्ष तक के सभी तत्त्वों का ज्ञान भी सम्यग् ही करना चाहिये । सोने में सुगन्ध की तरह ज्ञान और श्रद्धा (दर्शन व ज्ञान) सम्यग् होने पर यदि आचरण याने चारित्र भी सम्यग् बन जाय, चारित्र इनके साथ मिल जाय तो, इस तरह दर्शन-ज्ञान व चारित्र तीनों इकट्ठे हो जाए तो वह मोक्ष मार्ग बन जाता है। इसीलिए कहा है- “सम्यग् दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्ग: ऐसे मोक्षमार्ग को प्राप्त करके जीव मोक्ष को प्राप्त कर सकता है । इस प्रकार मोक्ष की प्राप्ति में सम्यक्त्व की सर्वप्रथम आवश्यकता होती है। इस प्रकार के सम्यक्त्व को समझने के लिए शास्त्रकार महर्षियों ने सम्यक्त्व को अनेक प्रकार से दर्शाया है। . सम्यक्त्व के विविध प्रकार एगविह दुविह तिविहं, चउहा पंचविहं दसविहं सम्म। दव्वाइ कारयाई उवसमभेएहिं वा सम्म। . एगविह सम्मरूई, निसग्गहिगमेहि भवे तयं दुविहं । तिविहं संखइआई अहवाविहु कारगाईअं॥ . खइगाई सासणजुअं, चव्हा वेअगजुअंतु पंचविहं । तं मिच्छचरमपुग्गल-वेअणओ दसविहं एअं॥ . प्रवचन सारोद्धार ग्रन्थ में सम्यक्त्व को विविध प्रकारों से समझाने के लिए संख्या के आधार पर कई प्रकार बनाकर बताए हैं, जिसमें एक प्रकार से, दो प्रकार से, तीन भेद से, चार भेद से, पाँच भेद से और दस भेद से, इस तरह विविध प्रकारों से सम्यक्त्व का स्वरूप समझाया गया है । अतः इनका क्रमशः विचार करना लाभदायक होगा। (१) एक प्रकार से सम्यक्त्व– “एगविह सम्मरूई" सम्यक्त्व रूचि को एक प्रकार का सम्यक्त्व कहते हैं या “तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं” तत्त्वार्थ में श्रद्धा रखना। (२) दो प्रकार से सम्यक्त्व भिन्न-भिन्न तरीकों से अलग-अलग रूप से होता है। ५३२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002483
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year2007
Total Pages570
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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