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मोक्ष रूपी किसी सीढ़ी का प्रथम सोपान सम्यक्त्व है तो अन्तिम सोपान मोक्ष है। अतः मोक्ष की मंजिल पानेवालों को सम्यक्त्व के प्रथम सोपान पर चढ़ने से ही अपनी मोक्ष-यात्रा प्रारम्भ करनी पड़ती है । अतः ज्ञानी महापुरुषों ने कहा है कि
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः। (१-१) इस सूत्र में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग् चारित्र को मोक्ष मार्ग बताया है। इस मार्ग का प्रारम्भ सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति से होता है और अन्त मोक्ष प्राप्ति में है अतः सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र मिलकर मोक्ष का मार्ग बनता है।
नाणं च दंसणं चैव, चरित्तं च तवो तहा।
एयमग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छंति सुग्गई। (उत्तरा–३) ज्ञान-दर्शन-चारित्र, तप का सम्यग् मार्ग प्राप्त करके जीव मोक्ष रूपी सद्गति प्राप्त करता है।
ऐसा सम्यक्त्व प्रथम बार प्राप्त होते ही सबसे बड़ा लाभ यह है कि उस जीव का मोक्ष उसी समय निश्चित हो जाता है। ऐसा निश्चित हो जाता है कि यह जीव अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करेगा। इसमें कोई सन्देह नहीं; भले ही काल का अन्तर हो । इसलिए सम्यक्त्व और मोक्षमार्ग के बीच अविनाभाव (परस्पर-पूरक) सम्बन्ध जोड़कर यह कह सकते हैं कि जो-जो सम्यक्त्व पाएगा, वह मोक्ष में अवश्य जाएगा, तथा जो मोक्ष में जाएगा वह अवश्यमेव सम्यक्त्व प्राप्त किया हुआ होगा। यह सम्बन्ध ठीक वैसा ही है, जैसे दिन होगा तो सूर्य होगा ही, जहाँ सूर्य है वहाँ दिन अवश्यमेव होगा । इस कथन को हम इस रूप में कह सकते हैं कि दोनों एक दूसरे के साथ ही होते हैं। ___अतः सूर्य होने पर दिन और दिन होने पर सूर्य निश्चित ही होगा। ठीक इसी तरह सम्यक्त्वी का मोक्ष अवश्य होगा। और जिसे मोक्ष प्राप्त होगा वह सम्यक्त्वी निश्चित होगा । अतः सम्यक्त्व मोक्ष प्राप्ति का लाइसेंस या सर्टीफिकेट (प्रमाण-पत्र) है। ___ अबरहा प्रश्न बीच में सिर्फ काल (समय) का । सम्यक्त्व पाने के कितने समय बाद जीव मोक्ष पाएगा? इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि
अन्तोमुत्तमित्तं पिफासियं हुज्ज जेहिंसम्मत्तं । - तेसिं अवड पुग्गल परियट्टो चेव संसारो॥ (नवतत्त्व-५३) ऐसा सम्यक्त्व अन्तर्मुहूर्त (दो घड़ी = ४८ मिनिट) मात्र काल भी जिसे स्पर्श या प्राप्त हुआ हो, वह जीव अवश्य ही अर्धपुद्गल परावर्त परिमित काल में मोक्ष प्राप्त करता
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आध्यात्मिक विकास यात्रा