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यथाप्रवृत्तिकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण आदि करण करता हुआ, अंतरंग विशुद्धि एवं अध्यवसाय शुद्धि के आधार पर नैसर्गिक अर्थात् स्वाभाविक प्रक्रिया से सम्यक्त्व प्राप्त करते हैं, उसे निसर्ग सम्यक्त्व कहते हैं । सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति अंतरंग और बाह्य दो निमित्तों से होती है। अतः निसर्ग यह अंतरंग निमित्त है, और अधिगम यह बाह्य निमित्तजन्य है।
__ निसर्ग और अधिगम ये दोनों सम्यक्त्व के प्रकार नहीं हैं, लेकिन सम्यक्त्व प्राप्ति की प्रक्रिया के मात्र दो मार्ग है । जीवविशेष की योग्यताविशेष, परिपक्व होने पर, किसी देव-गुरु आदि के उपदेश के अभाव में भी, वह नैसर्गिक रूप से अंतरंग विशुद्धि के आधार पर, तीनों करण करके जो सम्यक्त्व प्राप्त करता है, उसे निसर्ग सम्यक्त्व कहते
(२) अधिगम से सम्यक्त्व-अधिगम अर्थात् तीर्थंकर, गुरु आदि के उपदेशरूप बाह्य निमित्त। - इसमें देव-गुरु के उपदेश, धर्मोपदेश, जिनप्रतिमा दर्शन-पूजन, जिनागम, प्रवचन श्रवण, आदि बाह्य निमित्तों की प्रधानता रहती है। इन प्रेरक निमित्तों से जिसे सम्यक्त्व प्राप्त होता हो, उसे अधिगम सम्यक्त्व कहते हैं । ऐसा सम्यक्त्व चाहे बाह्य निमित्त से हो या बिना बाह्य निमित्त के हो, दोनों ही प्रकार में प्रधान (मुख्य) अंतरंग निमित्त है।
अंतरंग निमित्त की शुद्धता के बिना, बाह्य निमित्तादि मिलने पर भी, सम्यक्त्व नहीं होता है। इसलिए अंतरंग निमित्त की शुद्धता परम आवश्यक है। बाह्य निमित्त रूप देव-गुरु धर्मोपदेश आदि की प्राप्ति भी अंतरंग निमित्त को शुद्ध या जागृत करने में सहायक बनती है । इस तरह अनादि मिथ्या दृष्टि जीव बाह्य निमित्त के सद्भाव या अभाव में,निसर्ग या अधिगम दोनों ही मार्ग से सम्यक्त्व प्राप्त करता है। दोनों ही तरह से मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का क्षयोपशम होता है । बाह्य निमित्त द्वारा जो अंतरंग निमित्त प्रकट होता है, उसे अधिगम सम्यक्त्व कहते हैं। लेकिन दोनों में ही जीव का भव्यत्व परिपक्व होना मुख्य आधार है। .
मिथ्यात्वमोहनीय कर्म के क्षयोपशम आदि का कार्य ही उपरोक्त- १. निसर्ग, २. अधिगम द्वारा होता है । अतः सम्यक्त्व की प्राप्ति निसर्ग और अधिगम दो प्रकार से होती है । जब जंगल में लगा हुआ दावानल बढ़ते-बढ़ते, ऊखर भूमि तक पहुंचते ही, अपने आप (स्वयमेव) शान्त हो जाता है, तब दावानल की शान्ति में कोई बाह्य निमित्त नहीं है ।
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आध्यात्मिक विकास यात्रा