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भागकर आना, इतनी शीघ्रता से बलिपिण्ड उठा लेना इस में कितनी शीघ्र गति द्रुत गति होगी? कल्पना करिए। ___इतनी द्रुतगति से वे सभी देवता छओं दिशाओं में लोक का अन्त देखने के लिए भागे.... भागते भागते भागते ही जाएं. ... कब तक भागते रहें? इसके लिए काल कितना लगे? कितने काल तक भागते ही रहें ? इस के लिए कहते हैं कि एक पुत्र पैदा हुआ हो जिसका आयुष्य १००० वर्ष का हो .... उसका दूसरा पुत्र १००० वर्ष के आयुष्यवाला हों..... वह भी मर जाय उसके बाद तीसरी पीढ़ी का तीसरा पुत्र भी १००० वर्ष के आयुष्यवाला भी मृत्यु पा जाय..... इस तरह हजार-हजार वर्ष के आयुष्यवाली सात पीढ़ीयां बीत जाय.... ऐसे ७००० वर्ष तक उतनी ही द्रुत-शीघ्रगति से देवता भागते ही जाएं.... भागते ही जाएं.... और भागते ही रहें....
(इस बीच गौतमस्वामी पूछते हैं)- हे भंते ! इतने ७००० वर्षों तक निरन्तरअविरत इतनी शीघ्र गति से भागते हुए देवता जो लोकान्त की तरफ छओं दिशाओं में भाग रहे हैं । (गौतम-तेसिणं भंते । देवाणं किं गए बहुएं? अगए बहुए ?)
(म. गोयमा । गए बहुए नो अगए बहुए । गयाओ से अगए असंखेज्जई भागे। अगयाओ से असंखेज्जगुणे । लोए णं गोयमा ए महालए पनत्ते)
वे ज्यादा भाग गए या ज्यादा भाग जाना शेष बचा है? इस प्रश्न के उत्तर में-भगवतीसूत्र के इस पाठ में श्री वीर प्रभु फरमा रहे हैं कि- हे गौतम ! हाँ... वे गए ज्यादा और शेष थोडा ही बचा है,। जितने वे गए हैं उसका असंख्यातवाँ भाग ही अब जाना शेष है । अथवा जितना भाग शेष जाना बचा है उससे असंख्यात गुना भाग वे जा चुके हैं। अब असंख्यातवाँ भाग ही जाना शेष बचा है।
उपमा के इस दृष्टान्त में आप गति और समय पर पूरा ध्यान दीजिए । देवताओं की गति कितनी ज्यादा द्रुत गति है ! किस गति की शीघ्रता से वे भाग रहे हैं..... और सात पीढ़ीयों के ७००० वर्ष तक निरंतर–अविरत, इसी गति से सतत भागते ही रहने के बाद भी लोकान्त को नहीं छ सके हैं। अभी भी जाना अवशिष्ट है। यह तो लोक की बात है जो सीमित परिमित है। असंख्य योजनों का सीमित भाग ही है। इसलिए अन्त आना संभव है। यदि अनन्त होता तो अन्त आना संभव ही नहीं था। अनन्त की बात अलोक के विषय में बैठेगी। अतः भगवतीसूत्र में अलोक की अनन्तता को समझाने के लिए जो दृष्टान्त दिया है वह भी यहाँ प्रस्तुत करता हूँ जिससे अलोक की अनन्तत्ता को हम गम्भीरता से समझ सकें ..... ...
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आध्यात्मिक विकास यात्रा