________________
हैं । इन में असंख्यातवाँ अन्तिम समुद्र स्वयंभूरमण समुद्र है । बस, इस नाम के समुद्र के बाद लोकान्त आ जाता है । तिर्छालोक का लोकान्त (अन्त) आता है । माप के प्रमाण के विषय में सूत्र में कहा है कि____ द्विर्द्धिर्विष्कम्भाः पूर्व-पूर्व-परिक्षेपिणो वलयाऽऽकृतयः ॥३-८ ।।
ये सभी द्वीप और समुद्र क्रम से डबल-डबल विस्तार वाले हैं । इस क्रम से जंबूद्वीप १ लाख योजन विस्तार वाला है। और इसके आगे लवण समुद्र २ लाख योजन विस्तारवाला है । आगे सभी द्वीप-समुद्रक्रम से एक दूसरे से दुगुने-दुगुने विस्तार वालें हैं। इन में ९ द्वीप और ९ समुद्रों के नाम और उसके विस्तार का माप-प्रमाण जो दुगुना-दुगुना है वह ऊपर द्वीप-समुद्रों के साथ लिखा है। ये सभी द्वीप-समुद्र वलयाकृति में हैं । वलय यहाँ पर हाथ में पहनने के कंगन (बंगडी) के आकारवाले हैं। अर्थात् गोलाकार हैं । जंबूद्वीप संपूर्ण कंगन की तरह गोल है। उसके बाद लवण समुद्र भी कंगन की तरह गोल है। इस तरह आगे सभी द्वीप-समुद्र गोलाकार स्थिति में एक के बाद एक वलयाकार हैं । ऐसे असंख्य द्वीप-समुद्र हैं । जो माप-प्रमाण में एक दूसरे से दुगुने हैं । इस तरह अन्तिम स्वयंभूरमण समुद्र है । वहाँ तक लोक की सीमा है । उसके बाद अलोक की शुरुआत हो जाती है। स्वयंभूरमण समुद्र का माप-प्रमाण असंख्य योजनों का आएगा। लोक का अन्तर मापने का उदाहरण
श्री भगवती सूत्र आगम में श्री गौतमस्वामी गणधर भगवंत ने सर्वज्ञ श्री वीर प्रभु से पूछा और परमात्मा महावीर प्रभु ने फरमाया ऐसा संवाद है । जो इसी लोक के विषय पर विस्तार से हैं । आगम शास्त्र की बात है अतः विश्वसनीय है।
गौतम-(प्रश्न) हे भंते । यह लोक कितना बड़ा है ? कितना विस्तार है ? लोकान्त तक पहुँचना कितना संभव है?
(भ. महावीर प्रभु ने समझाने के लिए एक काल्पनिक दृष्टान्त से समझाते हुए कहा कि....) मानों कि बहुत ही शक्तिशाली ६ देवता... जंबूद्वीप के मेरुपर्वत के ऊपरि चूलिका पर रहे हुए हो, और बिल्कुल नीचे ४ दिक्कुमारिकाएं बलिपिण्ड लेकर खडी हो । वे एक साथ चारों दिशाओं में बलिपिण्ड फेंकें, इतने में ही ऊपरि–चुलिका से देव अत्यन्त तेज गति से इतनी शीघ्रता से दौडे कि बलिपिण्ड वापिस जमीन पर न गिरे, और गिरने से पहले ही वह देव उस बलिपिण्ड को उठा लें । इतने ऊपर से-चूलिका पर से इतना तेज
जगत् का स्वरूप
39