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उर्वलोक
जं किंची नाम तित्थं सग्गे-पायाली-माणसे लोए। जाइं जिण बिम्बाई, ताई सव्वाइं वंदामि ॥
स्वर्ग, पाताल और मनुष्य लोक ऐसी नाम संज्ञा भी दी गई है। परन्तु बात एक ही है । १) ऊर्ध्व लोक को स्वर्ग कहा गया है । वहाँ देवताओंके रहने के कारण देवलोक भी कहते हैं । २) अधोलोक को पाताल लोक कहा है। वहाँ नारकी जीवों के ही रहने का स्थान-क्षेत्र होने से नरक लोकपाताल लोक नाम रखा गया है । इसी तरह ३) तिर्शी लोक मनुष्यों के रहने का क्षेत्र है । अतः इसे मनुष्य लोक भी कहते हैं। अब विस्तार से इन तीनों लोकों के स्वरूप का विचार करें।
तिर्शलोक
'अधोलोक
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१) ऊर्ध्व-देवलोक
उत्कृष्ट परिणामी, ऊर्ध्वभाग में होने से अथवा उत्तम परिणामों का योगवाला, और क्षेत्र के प्रभाव से शुभ परिणामी द्रव्यों की संभावना के योग से ऊर्ध्वलोक ऐसा सार्थक नाम रखा गया है। देवताओं के निवास योग्य विमानों के स्थान है और देव-गण-देवता ही वहाँ रहते होने से देवलोक भी कहते हैं । १४ राजलोक के नीचे के ७ राजलोक पूरा होने के पश्चात् ही ऊपर के ८ वें राजलोक से ऊर्ध्वलोक का प्रारंभ होता है ।
जगत् का स्वरूप