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________________ के कारण त्रस नाडी नामकरण सार्थक है। क्योंकि त्रस जीव इसमें ही रहते हैं। इसके बाहर त्रस जीव नहीं रहते हैं । यह १ राज (रज्जु) लोक चौडी और १४ राजलोक लम्बी विस्तारवाली है । यह चौडाई में ४ खंडुक तथा लम्बाई में ५६ खंडुकं प्रमाण है। तिरिय सत्तावन्ना, उ8 पंचेव हुँति रेहाओ। पाएसु चउसु रज्जु चउदसरज्जु य तसनाडी। ___ लोक प्रकाश ग्रन्थ के आधार पर इस त्रस नाडी की रचना का स्वरूप बताते हुए लिखते हैं कि खडी पाँच लाइनें खींचनी, इन ५ के ३ हस्तांगुली I प्रमाण अंतर तो ४ ही होंगे। अतः उनकी चौडाई १ रज्जु प्रमाण समझा जायेगा। इस खडी ५ लाईन पर ही ५७ टेढी लाईने समान प्रमाण की और समान चौडाई की ही खींचनी । जिससे ५७ के अंतर ५६ खंडुक प्रमाण लंबाई आएगी । (१ राज के ४ खंडुक तो १४ राज के १४४४ = ५६ खंडुक) इस तरह त्रस नाडी का स्वरूप दर्शाया है। १४ राजलोक का आकार-प्रकार समग्र विराट यह ब्रह्माण्ड सर्वज्ञ तीर्थंकर परमात्मा के अनन्त ज्ञान में जैसा दिखाई दिया वैसा ही वीतराग स्वभाव से प्रभु ने सर्व जीवों को दर्शाया है । अतः बनाने का प्रश्न ही नहीं खडा होता है। सिर्फ बताने की ही बात है। यह विराट ब्रह्माण्ड कैसा है ? किस प्रकार की आकृतिवाला है? इसका स्पष्ट स्वरूप बताते हुए सर्वज्ञ प्रभु फरमाते हैं कि १४ राजलोक प्रमाण इम विराट ब्रह्माण्ड का आकार वैशाख संस्थान के जैसा है। अथवा वैराट आकार है । वैशाख का अर्थ है- २ पैर फैलाकर और दोनों हाथ को कटि प्रदेश–कमर पर रखकर हाथ की कोनी फैलाकर रखने वाले खडे स्वस्थ मनुष्य के आकार is जगत् का स्वरूप
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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