________________
यह लोक क्षेत्र प्रमाण में १४ रज्जु प्रमाण है । रज्जु अर्थात् रस्सी । रज्जु को माप की संज्ञा देकर योजनों में गिनती की है। ऐसे असंख्य योजनों का एक रज्जु होता है । रज्जु को राज भी कहा है । और लोक शब्द जोडकर 'राजलोक' शब्द से व्यवहार किया जाता है। यह संपूर्ण लोक ऊपरी किनारे से नीचे की सतह तक १४ राजलोक प्रमाण का है। नीचे के भाग में ७ राजलोक और ऊपर भी ७ राजलोक इस तरह १४ राजलोक होते हैं। इसके मध्यवर्ती बीच के केन्द्र में मेरु पर्वत स्थित है।
नीचे चौडाई ७ राजलोक प्रमाण है। धीरे-धीरे ऊपर आते आते चौडाई क्रमशः घटती जाती है। सातवीं नरक की ७ राजलोक चौडाई है। ६ ट्ठी नरक की चौडाई ६ राजलोक । ५ वी नरक की चौडाई ५ राज, ४ थी नरक की चौडाई-४ राज, तीसरी नरक पृथ्वी की ३ राज, २ री नरक की २ राज, पहली नरक पृथ्वी की १ राज चौडाई है । इस तरह आधे लोक तक चौडाई क्रमशः घटती गई। आब आगे वापिस चौडाई बढती है। नीचे से क्रमशः सात राज हो गए । अब आगे ऊपर चढते हुए ८ वें राज लोक की फिर से २ राज की चौडाई, ९ वें राजलोक की चौडाई ३ राज, १० वें राजलोक की ५ राज, ११ वें राजलोक की फिर घटकर ३ राज, १२ वें राजलोक की फिर घटकर २ राज, और १३ वें राजलोक की १ राज । लोक की इस तरह लंबाई-चौडाई के माप प्रमाण से यह १४ राजलोक समस्त ब्रह्माण्ड है। इसी की सीमा के अन्तर्गत १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशास्तिकाय, ४. जीवास्तिकाय एवं ५. पुद्गलास्तिकाय ये पंचास्तिकाय हैं । अतः समग्र ब्रह्माण्ड जगत् पंचास्तिकायमय है । षड्द्रव्यों से भरा पडा
त्रस नाडी का स्वरूप
इस १४ राजलोक क्षेत्र के बीचों-बीच ऊपर से नीचे तक १४ राज लम्बी, १ राज चौडी ऐसी त्रस नाडी है। त्रस जीवों के ही प्रमुख रूप से रहने के कारण इसका सनाडी नामकरण सार्थक रखा गया है । ऊपरी अन्तिम किनारे से लेकर लोक के नीचे के अन्तिम किनारे तक स्पर्श करती एक नलिका के आकार जैसी होने के कारण नाडी शब्द का प्रयोग भी सार्थक है । इस त्रस नाडी में स्थावर पृथ्वीकायिक जीवादि भी 'हते ही हैं । और स्थावर जीव तो त्रस नाडी में तथा त्रस नाडी के बाहर समस्त लो त्येक क्षेत्र में व्याप्त हैं। समूचे लोक का एक कोना भी खाली नहीं है । वर जीव न हो । अर्थात् सूक्ष्म प्रकार के स्थावर जीवों से समस्त ले . लाकन त्रस जीवों की प्रमुखता
२०
आध्यात्मिक विकास यात्रा