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चेतन जीवात्मा भी गणों का समूहात्मक पिण्ड है । अपने ज्ञानदर्शनादि गुणों से यह जड-पुद्गल से सर्वथा भिन्न एवं विपरीत गुणवान् द्रव्य है। चेतन आत्मा भी अनुत्पन्न-अर्थात् किसी के द्वारा उत्पन्न किया हुआ द्रव्य नहीं है । किसी भी पदार्थों-द्रव्यों के मिश्रण से भी उसका उत्पन्न होना संभव नहीं है । आधुनिक विज्ञान के या अन्य नास्तिक मान्यताओं के आधार पर किसी भी द्रव्यों के मिश्रण compound से बना यह चेतनात्मा द्रव्य है, ऐसी धारणा सर्वथा गलत है-भ्रामक है । ऐसे कोई द्रव्य शोधे नहीं गए हैं कि जिनका मिश्रण करके चेतन द्रव्य को सभी कोई बना सके। यह भी संभव नहीं है। न भूतो न भविष्यति जैसी बात है। चेतनात्मा अरूपी अमूर्त द्रव्य है। जिन पदार्थों का मिश्रण किया जाय वे सभी .... रूपी-मूर्त द्रव्य हैं और रूपी-मूर्त द्रव्यों के मिश्रण से अरूपी-अमूर्त चेतन की उत्पत्ति कैसे हो सकती है? संभव ही नहीं है। इसी तरह रूपी-मूर्त द्रव्यों के मिश्रण से उत्पन्न मदशक्ति की तरह चेतना शक्ति उत्पन्न होती है यह भी भ्रमणा है। उदा. मदिरापान से जैसी मदशक्ति उत्पन्न होती है वैसी कोई चेतना शक्ति मानने में भी बडा अनर्थ होगा। क्योंकि मदिरा की मद शक्ति नित्य नहीं रहती है । वह भी अल्पकालिक है । मदशक्ति-नशा तो पुनः उतर जाता है । फिर व्यक्ति सामान्यस्थिति में पूर्ववत् हो जाता है तो चेतना को मदशक्ति की तरह मानने से चेतना के नांश की आपत्ती आयेगी तो चेतनात्मा को क्षणिक नाशवंत मानना पडेगा। ऐसा भी संभव नहीं है। चेतनात्मा नित्य-शाश्वत-अविनाशी द्रव्य है ।
द्रव्य दो प्रकार के होते हैं । एक उत्पन्न होने वाला द्रव्य और दूसरा अनुत्पन्न-उत्पन्न न होने वाला द्रव्य । जो जो उत्पन्नधर्मी है वह वह नाशधर्मी भी है । और जो जो नाशवंत हैं वे सभी उत्पन्नशील हैं। दूसरे द्रव्य में जो जो अनुत्पन्न होते हैं वें द्रव्य अविनाशी-शाश्वत् नित्य होते हैं । जो जो.अविनाशी-नित्य-शाश्वत्-सदाकाल रहने वाले द्रव्य हैं वे सभी अनुत्पन्न-उत्पन्न न होनेवाले द्रव्य हैं । अनुत्पन्न द्रव्यों की आदि-शुरुआत नहीं होती है। वे सभी अनादि सिद्ध द्रव्य होते हैं । इसी तरह जो जो अनादि सिद्ध अस्तित्ववाले द्रव्य होते हैं वे सभी अविनाशी-अपर्यवसित-गुणवान–नित्य-शाश्वत ही होते हैं। जैसे आकाश-धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय, चेतनात्मा एवं परमाणु ये सभी नित्य-शाश्वत द्रव्य हैं । अतः अनुत्पन्न- अनादि द्रव्य हैं । अतः इनको कभी भी उत्पन्न करने का बनाने का प्रश्न ही खडा नहीं होता है। इसलिए इनको बनानेवाले को मानना और ये बननेवाले–उत्पन्न होने वाले द्रव्य मानना ही सबसे बडी मूर्खता है-अज्ञानता है । ऐसी अज्ञानता में रहकर विपरीत ज्ञान को ही सदा के लिए सही मान लेना मिथ्यात्व है। अतः
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आध्यात्मिक विकास यात्रा