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चेतन-आत्मा के गुण
जड-अजीव के गुण चेतन ज्ञानवान् द्रव्य है।
जड सर्वथा ज्ञान रहित होता है । चेतन दर्शनवान् द्रव्य है। जड सर्वथा दर्शनरहित है। चेतन चेतना शक्तियुक्त द्रव्य है। जड में चेतना शक्ति का सर्वथा अभाव है। चेतनात्मा अनन्त शक्ति की मालिक है। जड कारक शक्ति रहित है। चेतनात्मा अरूपी द्रव्य है। जड पुद्गलरूपी द्रव्यं है। सुख-दुःख की संवेदना का अनुभव जड में किसी भी प्रकार की सुख-दुःख की करने वाला चेतन द्रव्य है। संवेदना अनुभव करने की शक्ति नहीं है। ..: चेतनात्मा में कर्ता-भोक्ता शक्ति है। जड़ में कर्ता भोक्ता शक्ति सर्वथा नहीं है। चेतन आत्मा अनामी-अरूपी है। जड पद्गल नामी-रूपी है। चेतन आत्मा नित्य-शाश्वत है। जड पुद्गल-अनित्य-नाशवंत है। चेतन वर्ण-गंध-रस-स्पर्श रहित है। जड पुद्गल वर्ण-गंध-रस-स्पर्शयुक्त है । चेतन कर्म मुक्त एवं बंधरहित होता है। जड को कर्म का कोई संबंध ही नहीं है अतः
बंध मुक्त का प्रश्न ही नहीं है। चेतन अमूर्त द्रव्य है।
जड पुद्गल मूर्त द्रव्य है। चेतनात्मा का कोई आकार-प्रकार नहीं है। जड पुद्गल स्कंध के आकार-प्रकार होते हैं। चेतन पूरण-गलन स्वभाव रहित होता है । जड में पूरण-गलन का स्वभाव होता है। शुद्ध-शुद्धतर-शुद्धतम-सिद्ध इस तरह जड सिद्ध नहीं बनता है। विकास नहीं सिर्फ चेतन का विकास होता है।
परिवर्तन होता है। संसार में चेतनात्मा जन्म मरण जड के लिए जन्ममरण का प्रश्न ही नहीं है । धारण करती है। : :: - इस तरह इन भिन्न भिन्न गुणों से द्रव्य की भिन्नता सिद्ध होती है। गुण द्रव्य को छोडकर अतिरिक्त स्वतंत्र कभी भी नहीं रहते हैं। इसी तरह द्रव्य गुण को छोडकर अन्यत्र स्वतंत्र रूप से कहीं भी-कभी भी नहीं रहता है। जैसे सूर्य की किरणें सूर्य के बिना कभी भी कहीं भी नहीं रहती हैं । और सूर्य भी किरणों के बिना कभी नहीं रहता है । गुण द्रव्याश्रित ही रहते हैं और द्रव्य गुणवान ही होता है । अपने अपने भिन्न-भिन्न गुणों से द्रव्य भी भिन्न ही होते हैं।
जगत् का स्वरूप