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________________ द्रव्य की व्याख्या प. उमास्वाति वाचकवर्यजी ने तत्त्वार्थाधिगम सूत्र में द्रव्य की व्याख्या करते हुए सूत्र इस प्रकार बनाया है कि गुण-पर्यायवद्द्रव्यम्- गुण और पर्याय वाला द्रव्य कहलाता है । गुणों से ही द्रव्य अलग पडते हैं । गुणों की भिन्नता के कारण द्रव्यों की भिन्नता होती है । अतः कोई भी द्रव्य गुणात्मक-पर्यायात्मक ही होता है। गुण पर्यायरहित जगत में एक भी द्रव्य नहीं है । जो जो द्रव्य है वह वह गुण पर्यायात्मक है ही और जो जो गुण पर्यायात्मक होता है वह वह द्रव्य ही होता है। अतः द्रव्य हो और गुण पर्यायरहित हो यह संभव नहीं है। अतः गुणपर्याययुक्त ही द्रव्य होता है । अपने अपने भिन्न गुणों के कारण ही द्रव्यों में भिन्नता आती है। जैसे धर्मास्तिकाय द्रव्य का गतिसहायकता का गुण है अतः वह दूसरे द्रव्यों से भिन्न द्रव्य अलग ही गिना जाता है। ठीक वैसे ही अधर्मास्तिकाय द्रव्य का स्थितीसहायकता गुण है । आकाश द्रव्य का अवकाश-देने का विशिष्ट गुण है। ये गति-स्थिति-सहायकता और अवकाश प्रदानता के गुण अपने अपने नियत द्रव्य में ही रहते हैं । एक दूसरे में संक्रमित नहीं होते हैं। इसी तरह जड-चेतन के भिन्न-भिन्न गुण हैं जिससे वे अलग-स्वतंत्र द्रव्य सिद्ध होते हैं। आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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