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२०,१००,१००० या संख्यात - असंख्यात - अनन्त परमाणुओं का भी बनता है । जबकी परमाणु तो एक अखण्ड-स्वतंत्र अविभाज्य इकाई है ।
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ये परमाणु अदाह्य अर्थात् जलकर नष्ट नहीं होते हैं । अविभाज्य अर्थात् जिसका विभाजन—विभागीकरण कभी भी संभव नहीं है । परमाणु को फिर से तोडा नहीं जा सकता है । अतः वह अछेद्य - अभेद्य, अकाट्य है । अब आगे फिर से इसका छेदन - भेदन नहीं हो सकता है । विज्ञान के क्षेत्र में काफी वर्षों पहले यही ऐसी ही मान्यता थी । लेकिन अब विज्ञान में यह व्याख्या बदल गई है। Atom can be blast अणु का विभाजन होता है । अणु का विस्फोट किया जाता है । यह अणु की अखंडितता को सिद्ध नहीं करता है अपितु खंडितता को सिद्ध करता है । इससे विज्ञान के घर में परमाणु छेद्य-भेद्य - दाह्य-काट्य रहेगा । जोकि स्कंध का लक्षण है । इससे परमाणु की व्याख्या को धक्का लगता है । अतः सर्वज्ञोपदिष्ट–सर्वज्ञ के ज्ञान में जो स्वरूप परमाणु का स्पष्ट हुआ है उसकी व्याख्या करते हुए सर्वज्ञ भगवंत ने कहा है कि- अछेद्य - अभेद्य - अदाह्य – अकाट्य - अविभाज्य सूक्ष्मतम इकाई हो, परमाणु है । यह परमाणु अजीव - जडद्रव्य है । ज्ञान-दर्शनादि चेतना रहित है। सुख-दुःख की संवेदना रहित है । अतः जीव आत्मा से सर्वथा विपरीत गुणधर्मवाला यह पुद्गल द्रव्य है । पुद्गलरूपी द्रव्य है ।
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पुद्गल के गुण
पुद्गल गुणात्मक द्रव्य है । यह भी द्रव्य है । अतः गुणपर्याय-युक्त ही है । पुद्गल के मुख्य गुण वर्ण-गंध-रस - स्पर्श हैं। और भी बताते हुए लिखा है किसद्दंधयार- उज्जोअअ- पभा - छाया - तवेहि य । वण्ण-गंध-रसा- फासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥
शब्द - अंधकार - उद्योत - प्रभा - छाया - आतप ये सभी पुद्गल ही हैं, जो वर्ण—गंध—रस—स्पर्शादि गुणयुक्त हैं । यह पुद्गल का लक्षण है ।
शब्द
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१. शब्द
ध्वनि यह पुद्गल द्रव्य ही है । यह १ ) सचित्त, २) अचित्त, ३) मिश्र तीन प्रकार की ध्वनि
जगत् का स्वरूप
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