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कोई हिंदुस्तान का आकाश ऐसा व्यवहार मात्र कह सकते हैं। वैसे ही अनन्त अलोक क्षेत्रगत आकाश को अलोकाकाश और लोकक्षेत्र सीमित आकाश को लोकाकाश अपेक्षा भेद से कहा है ।
इसी तरह घट के अन्दर के आकाश भाग को घटाकाश, कोठी टंकी के अन्दर के आकाश भाग को भी कोठीगत आकाश, टंकीगत आकाश ऐसे उपाधिगत व्यवहार नाम से विवक्षा की जा सकती है । ठीक वैसे ही लोकाकाश और अलोकाकाश की विवक्षा सापेक्षभाव से की गई है। फिर भी दोनों आकाशास्तिकाय के रूप में एक अखण्डद्रव्य है। क्षेत्र भेद से भेद है । अन्यथा अभेद है ।
आकाश प्रदेशों की व्यवस्था
वणकर (कपडे बुननेवाले) लोग जैसे कपडा बुनते हैं, पोवर लूम्स में कपडे के लिए धागा जैसे एक सीधा और एक आडा रखकर कपडा बुना जाता है, हजारों-लाखों मीटर लंबे कपडे में धागों की रचना जैसी होती है ठीक वैसी ही आकाश प्रदेशों की भी स्थिती होती है । जिस तरह एक सीधा धागा आडे धागे को जहाँ से स्पर्श करता हुआ जाता है उस स्पर्शांश को Cross point कहते हैं । वैसे ही आकाश के प्रदेश कहलाते हैं। ऐसे आकाश प्रदेश अनन्त हैं । यह अनन्त की संख्या लोकाकाश और अलोकाकाश दोनों को मिलाकर संपूर्ण आकाशास्तिकाय द्रव्य की है। इन्ही आकाश प्रदेशों के सहारे जीव एवं पुद्गल परमाणुओं की गति होती है । ऊपर से नीचे और बांए से दांए या विपरीत भी .... इस तरह गति होती है ।
अलाकाकाश
'लोक काश
अजन्त अलोक में लोक
आकाश अनन्त है । इसकी कहीं कोई सीमा या अन्त ही नहीं है । अतः अनन्त है । दोनों के बीच में यदि प्रमाण का विचार किया जाय तो पता चले कि कितना बडा- -छोटा कौन है ? तो कहते अलोकाकाश अनन्तगुना
कि
जगत् का स्वरूप
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