________________
सभी विशेषण दोनों में समान हैं। अधर्मास्तिकाय द्रव्य भी समस्त १४ राजलोकव्यापी एक अखण्ड असंख्यप्रदेशी द्रव्य है। यह अजीवद्रव्य अरूपी-अदृश्य है। अतः दृष्टीगोचर नहीं होता है। सर्वज्ञगम्य है। लोक बाहर-अलोक क्षेत्र में इसका अस्तित्व ही नहीं है । अतः यह मात्र लोकव्यापी द्रव्य है । अनादि-अपर्यवसित-अनन्तकालीन स्थितिवाला-अविनाशी द्रव्य है । यह कभी भी उत्पन्न नहीं होता है । अतः अनुत्पन्न द्रव्य है। अनुत्पन्न की आदि-शुरुआत नहीं होती है। अतः अनादिद्रव्य है। और कभी भी नाश-विनाश नहीं होता है, अतः
अविनाशी-अपर्यवसित द्रव्य है। इसके असंख्य प्रदेश होने से असंख्यप्रदेशी द्रव्य है । इसके भी स्कंध-देश-प्रदेश ये ३ भेद होते हैं । संपूर्ण लोकव्यापी यह एक अखण्डद्रव्य होने से लोक क्षेत्रव्यापी स्कंध गिना जाता है । इसीको एक छोटे क्षेत्र की विवक्षा करने पर देश कहा जाता है। और एक प्रदेश जो अलग नहीं होता है ऐसे अविभाजित प्रदेश को प्रदेश कहते हैं। इसका कोई सूक्ष्मतम प्रदेश भी अखण्ड स्कंध से अलग विभाजित नहीं होता है। अतः इसका परमाणु भेद विवक्षित नहीं है । परमाणु भेद एक मात्र पुद्गल द्रव्य में ही होता है। गुण स्वरूप से इसका गुण-अधम्मो ठिई सहावो
स्थितिसहायकता इस का गुण है। जैसे गति करनेवाले मछली-पक्षी आदि अपने ही स्वभाव से गति
जगत् का स्वरूप