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परंपरा चलेगी । मैं समझता हूँ कि ऐसे सर्वज्ञों के चरम सत्य को यथार्थ मानकर, जानकर सर्व जीवों को समझाना और उन्हें भी सत्य की दिशापर चलाना सर्वज्ञ जिनेश्वर भगवन्तों की सबसे बडी सेवा है । पूजा है । भक्ति है। सर्वज्ञ दर्शित जगत् का स्वरूप ___ अनन्त ज्ञानी श्री महावीर प्रभु ने अपनी अन्तिम देशना स्वरूप उत्तराध्ययन आगम शास्त्र में जगत् का स्वरूप बताते हुए कहा है कि...
धम्मो अहम्मो, आगासं, दव्वं इक्कि क्कमाहिअं। .
अणंताणि अ दव्वाणि, कालो पुग्गल जन्तवो। अस्तिकाय शब्द का अर्थ है प्रदेश समूहात्मक पिण्ड । प्रदेशों के समूहों का बना हुआ पिण्ड । ऐसे पाँच द्रव्य हैं जिनके प्रदेशों के समूहात्मक पिण्ड-स्वरूप यह जगत् है ।
षद्रव्यात्मक जगत् स्वरूप
धम्मो अहम्मो, आगासं, दव्वं इक्कि कमाहि अं। अणंताणि अदव्वाणि, कालो पुगल जन्तवो। ___ समस्त जगत् ६ द्रव्यों से व्याप्त है । ६ द्रव्यों से भरा हुआ यह जगत् है। १) जीव द्रव्य २) धर्मास्तिकाय द्रव्य ३) अधर्मास्तिकाय द्रव्य ४) आकाशद्रव्य ५) कालद्रव्य और ६) पुद्गल द्रव्य।
इन ६ द्रव्यों में ही पंचास्तिकायों का समावेश है। सिर्फ कालअस्तिकायात्मक न होने से उसकी गिनती पंचास्तिकाय में नहीं की गई है। काल एक मात्र वर्तना लक्षणवाला द्रव्य है।
आध्यात्मिक विकास यात्रा