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को राजस्थान आना पडा । दूसरा-तीसरा भाग पूज्यश्री ने बिजापूर के चातुर्मास में लिखा। नियमित पढते हुए मैं समझता भी जाता था। प्रश्नादि पूछकर समाधान भी पाता था। आत्मसंतुष्टि होती थी। बीच बीच में यमराज भी आकर द्वार खटखटाता रहा। लेकिन सौभाग्य से आयुष्य बलवान रहा... और पुण्ययोग से ग्रन्थलेखन की समाप्ति हुई । तीन भाग में ग्रन्थ पूर्ण हुआ। मुझे बेहद आनन्द-संतोष हुआ। .
सचमुच, मैं पूज्य पंन्यासजी महाराज जैसे विद्वान सन्त का ऋणी हूँ । सदा ही उनका बहुत बडा उपकार मानता हूँ। मेरे ऊपर महती करके अनेकों पर उपकार किया है । इनका जितना उपकार मैं मानूं उतना कम ही है । इस ८६ वर्ष की दीर्घ वृद्धावस्था में आशा नहीं थी कि मनोभावना पूरी होगी । लेकिन पू. गुरुदेव श्री ने मेरी मनोभावना पूरी की । मैं धन्य धन्य बन गया। उनकी इस असीम कृपा से मैं संतुष्ट हो गया। ऐसी अत्यन्त उपयोगी-आवश्यक पुस्तक तैयार हुई । पू. गुरुदेव ने इस ग्रन्थ में शास्त्रों-आगमों आदि का आधार लेते हुए गहन-कठिन पदार्थों को सरलता से समझाया है। चित्रों के साथ समझाया है । तर्क युक्ति के साथ बुद्धिगम्य बनाया है । सरल भाषा में शास्त्रीय शैली से समझाते हुए... निगोदावस्था से मोक्षप्राप्ति तक का आत्मा का विकास क्रम-उत्थान की -प्रक्रिया दर्शायी है । अतः मुझे पूर्ण विश्वास है कि... सर्वसाधारण जन को भी आत्मा का विकास साधते हुए ऊपर उठने-ऊपर चढने के लिए काफी अच्छी सहायता मिलेगी। आध्यात्मिक लाभ होगा।
मेरे सहयोगी मित्र श्री अजितकुमारजी पारख एवं श्री श्रीचंदजी छाजेड, बेंगलोर निवासी श्री तिलोकचन्दजी को भी मैं धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिन्होंने समय-समय मुझे साथ दिया है।
साथ ही श्री वासुपूज्य जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, अक्कीपेठ, बेंगलोर के समस्त ट्रस्टीगण का भी मैं आभार व्यक्त करता हूँ कि जिन्होंने बडा कष्ट उठाकर भी इस पुस्तक की संपूर्ण मुद्रण व्यवस्था संभाली और पूरी पुस्तक तीनों भाग सहित तैयार करके दी।
पाठकगण को मैं यह यकीन दिलाना चाहता हूँ कि इस पुस्तक के प्रकाशन के पीछे नामना का अंशमात्र भी मोह नहीं है मुझे । मेरी एक ही हार्दिक इच्छा है कि... वाचकवर्ग इस पुस्तक के तीनों भागों का आदि से अन्त तक ३-४ बार अध्ययन करें। यह कहानी-किस्से की पुस्तक नहीं है । शास्त्र-सिद्धान्त की गहन पुस्तक है । अतः कृपया चिन्तन–मनन करें । गहराई को समझकर सर्वज्ञ के सिद्धान्तों के रहस्यों का खजाना पाएँ।