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________________ है। सभी तीर्थंकर ठीक एक जैसे ही होते हैं । गुणों में, ज्ञान में, वीतरागतादि के स्वरूप में । अतः सबका बताया हुआ मोक्षमार्ग रूप धर्म का स्वरूप सब काल में, सब क्षेत्रों में एक जैसा, एक समान ही रहता है । कोई फरक नहीं है । अतः क्षेत्रकालादि की दृष्टि से भी यह धर्म सर्वत्र शाश्वत है। सर्वत्र एकरूप ही है । जी हाँ, ... इतना जरूर है कि.. आज वहाँ चौथा आरा है । अतः भगवान आज भी वहाँ सदेह रूप में विचरते हैं । आज भी वहाँ केवलज्ञानी तथा वीतरागी आदि सर्वज्ञ भगवन्तों की सदेह साक्षात् उपलब्धि है । साक्षात् प्रत्यक्ष है । यहाँ भरतादि क्षेत्रों में प्रत्यक्ष नहीं भी है तो भी उनकी मूर्ति-प्रतिमा उन्हीं के रूप-स्वरूप को प्रकट करती हुई प्रतीक समान है । द्रव्यस्वरूप से चाहे वह पाषाण की हो, या धातु की हो या काष्ठ की हो जिस किसी की भी हो, आखिर है तो उसी सर्वज्ञ वीतरागी परमात्मा की । पिता के फोटो को पिता कहकर व्यवहार होता है, कागद पर छपे १००, १०००, रुपए की अंक-संख्या से उतने रुपए के रूप में ही व्यवहार होता है । तो फिर पद्मासनस्थ या कायोत्सर्गस्थ ध्यानस्थ अवस्था में स्थित प्रतिमा मूर्ति भी उसी परमात्मा की है, उस रूप में व्यवहार हो यह कैसे गलत सिद्ध हो सकता है ? संभव ही नहीं है। गलत कहना ही मिथ्या भाव है । अतः आज भी परमात्मा के उसी प्रकार के मोक्षमार्ग रूप धर्म की पूर्णरूप से उपासना करनी चाहिए। देव-गुण का पूर्ण आलम्बन लेकर आध्यात्मिक प्रगति आगे करनी चाहिए। ____ हम परमात्मा के अनुगामी हैं, अनुयायी हैं । अतः हमारा सिद्धान्त यही होना चाहिए कि.... “महाजनो येन गतः स पन्थाः"- हमारे पूर्वज महापुरुष जिस मार्ग पर चलकर गए हैं वही मार्ग हमारा भी होना चाहिए। हम भी उसी मार्ग पर चलकर मोक्ष में पहुँचे। १४ गुणस्थान का यह मार्ग मोक्ष का मार्ग है । यह शाश्वत है । तीनों काल में एक समान जिसका अस्तित्व और प्रचलन हो वह त्रैकालिक शाश्वत कहलाता है। इस दृष्टि से गुणस्थान का मार्ग त्रैकालिक शाश्वत है। उसमें भी ये १४ ही गुणस्थान शाश्वत स्वरूप हैं । संख्या में भी कम-ज्यादा का सवाल ही खडा नहीं होता है । १४ के बजाय १३ भी नहीं हो सकते हैं, इसी तरह १५ भी संभव नहीं हैं । १४ और ये ही १४ गुणस्थान शाश्वत हैं। मोक्ष शाश्वत है । और मोक्ष प्राप्त करने के लिए १४ गुणस्थान चढने का यह मोक्ष मार्ग भी शाश्वत है । अनन्त भूतकाल में जो भी... जितने भी मोक्ष में गए हैं वे सभी इन्हीं गुणस्थानों के मार्ग से गुजरे हैं । इसी तरह भविष्य के अनन्त काल तक जो भी और जितने भी मोक्ष में जाएंगे वे सब भी इसी १४ गुणस्थान के सोपानों पर आरूढ होकर ही मोक्ष
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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