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________________ उसे और उसकी प्राप्ति के मार्गरूप गुणस्थानों के राजमार्ग पर आरूढ होना है तो फिर वर्तमान में आज से ही क्यों नहीं समझना-आचरना चाहिए? मुक्ति की प्राप्ति शास्त्र में सिद्धान्त जो निश्चित है कि.... भरत क्षेत्र में पाँचवे आरे के कलियुग में कोई मोक्ष में नहीं जा सकता है। अतः आज यहाँ से मुक्ति की प्राप्ति संभव नहीं है परन्तु इस सिद्धान्त को भी न मानते हुए किसी-किसी संप्रदाय ने सांप्रदायिक ममत्त्वभाव से, मोहवश यह भी कह दिया है कि... नहीं हमारे यहाँ मोक्ष है । आज भी यहाँ से मोक्ष मिल सकता है । इस प्रकार के सांप्रदायिक अभिनिवेषिक भाव से ऐसा प्रतीत होता है कि... मोक्ष प्राप्ति कब होती है? कैसे होती है? उसके लिए क्या क्या होना अनिवार्य है? सहायक–सहयोगी क्या-क्या आवश्यक है ? इत्यादि विषयों का उन्हें रत्तीभर भी ज्ञान नहीं है। क्षेत्र और काल. की प्रबल कारणता कैसे जुडती है? इसका भी उन्हें ख्याल नहीं है । मात्र अभिनिवेशिक भाव से ही ऐसा बोलते हैं । सचमुच वे मात्र दयापात्र हैं। इसके आधार पर आप ऐसा मत सोचिए कि आज मोक्ष मिलता ही नहीं है, जब आज मोक्ष में जा ही नहीं सकते हैं तो फिर निरर्थक आज से हम क्यों धर्म आराधना, तप, त्याग, व्रत, पच्चक्खाण आदि करना? जब मोक्ष आज इस काल में संभव ही नहीं है तो फिर उसके कारणभूत धर्माराधना करके भी क्या फायदा? आज से ही क्यों गुणस्थानों पर चढने की जल्दबाजी करना? आगे जब महाविदेह क्षेत्र में जन्म मिलेगा, सीमंधरस्वामी आदि भगवान मिलेंगे, सुयोग्य गुरु का योग प्राप्त होगा, जब मोक्ष मिलना निश्चित होगा, तब धर्म करने का, गुणस्थानों पर चढने का सोचेंगे। आपकी यह विचारणा कहाँ तक उचित है ? इसका निर्णय आप स्वयं ही करें। अरो!.. आज वर्तमान के इस जन्म में धर्म, गुरु, परमात्मादि जो सर्वश्रेष्ठ रत्न सभी प्राप्त हुए हैं, और फिर भी यदि आपने कोई आराधना नहीं कि... तो याद रखिए- कर्म शास्त्र का नियम ऐसा कहता है कि...जिसको जो मिला है उसे भी यदि वह अच्छी तरह आराध नहीं सका, सही सदुपयोग नहीं कर सका तो निश्चित समझिए कि.. वह चीज और वैसे सभी उत्तम योग उसे पुनः मिलने की संभावना नहींवत् हो जाती है। ____ तुलना करके देखिए... आज भी महाविदेह क्षेत्र में जो धर्म सीमंधरस्वामी के पास है, जैसा है वैसा ही सब कुछ आज यहाँ भी है । सामायिक, नवकार, उपवासादि तप, जप, व्रतादि का स्वरूपादि सब कुछ यहाँ समान रूप से है। धर्म के स्वरूप में कोई फरक नहीं
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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