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________________ चढाव-उतार गुणस्थानों के सभी सोपान क्रमशः सुव्यवस्थित हैं । परन्तु जीवचढाव-उतार काफी करता है। समुद्र की लहरों पर चलती हुई नौका जैसे डोलती है, वैसे जीव भी अध्यवसायों-परिणामों की धारा पर डोलता हुआ चढाव-उतार करता है । चौथे अविरत सम्यक्त्व के गुणस्थान पर आकर सम्यक्त्वी जीव घडियाल के लोलक की तरह अध्यवसायों में चढाव-उतार करता है। श्रद्धा के सद्भाव सदाकाल एक समान रूप से स्थिर नहीं रह पाते हैं । अरे ! छठे गुणस्थान पर पहुँचा हुआ श्रमण भी अप्रमत्त बनकर सातवें अप्रमत्त गुणस्थान पर जाता है। बडी मुश्किल से उस प्रकार की अप्रमत्तता अध्यवसायों में कुछ क्षण, कुछ ही मिनिट रहता है कि जीव पुनः छट्टे पर आ जाता है । इस तरह चढाव-उतार होते रहते हैं। ११ वे गुणस्थान पर पहुँचा हुआ उपशम श्रेणी का जीव गुणस्थान का अंतर्मुहूर्त का काल पूर्ण होने पर गिरता है । या फिर आयुष्य समाप्त होने पर पतन होता है । इस तरह २ रे, ३ रे गुणस्थान पर भी होता है । इस तरह आरोह-अवरोह, उत्थान-पतन की प्रक्रिया में झूलती-डोलती आत्मा की यह नौका गुणस्थानरूप सागर में चलती है । उपरोक्त सारी प्रक्रिया प्रस्तुत पुस्तक में दर्शायी गई है । “गुणस्थान क्रमारोह” ग्रन्थ के आधार पर विवेचन-विश्लेषणपूर्वक किया गया है । “आध्यात्मिक विकास की यात्रा" का स्वरूप वर्णन किया है । प्रस्तुत पुस्तक पढकर प्रत्येक साधक को आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया समझनी ही चाहिए। यह भी एक शाश्वत मार्ग है । आत्मा के विकास के लिए १४ सोपानों का यह गुणस्थान-गुणश्रेणि का राजमार्ग है । शाश्वत मार्ग है । आज तक जो अनन्त आत्माएं संसार से मुक्त होकर मोक्ष में गई हैं, सिद्ध बनी हैं वे सभी इसी १४ गुणस्थान के सोपानों पर आरूढ होकर ही गई हैं। अतः भविष्य में भी मोक्ष में जाने का मार्ग यही रहेगा। मोक्ष शाश्वत है तो मोक्ष में आत्मा को ले जानेवाला मार्ग भी शाश्वत है। तीनों काल में एकसमान, एक ही राजमार्ग १४ गुणस्थान का यह त्रैकालिक शाश्वत मार्ग है । अतः यदि हमारी भी भावना मोक्ष में जाने की भविष्य में बन जाय तो हमें भी इन्हीं १४ गुणस्थान के सोपान चढने पडेंगे । यह निश्चित ही है...कि इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है । जब भावि में निश्चित ही है कि... इन्हीं १४ गुणस्थानों पर आरूढ होकर...आगे बढकर ही विकास साधते हए मोक्ष में जाना है । तो आज ही इसका स्वरूप क्यों न समझा जाय? भावि के लिए तैयारी तो वर्तमान में ही करनी चाहिए । वर्तमान में बोए गए बीज ही भविष्य में फल देंगे । इसलिए भविष्य में जिस मोक्ष को प्राप्त करना है,
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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