________________
धर्म का आधार सिद्धान्त पर रहता है । अतः सिद्धान्त सत्य–त्रैकालिक एकवाक्यता दर्शानेवाले शाश्वत स्वरूप के प्रतिबोधक होने चाहिए। सिद्धान्तों का ही सक्रिय आचारात्मक स्वरूप क्रियात्मक व्यवहारात्मक स्वरूप धर्म कहलाता है । अतः धर्मशास्त्रों के सिद्धान्तों का प्रतिपादन यदि सम्यग् सत्य रहेंगे तो उनके आचरण में उतरेंगे । परिणाम स्वरूप धर्म का पालन शुद्ध-सही होगा। क्या मिथ्यात्व अज्ञान मूलक है?
ज्ञान शब्द के आगे “अ” अक्षर लगने से अज्ञान शब्द की रचना हुई है। संस्कृत भाषा के व्याकरण के नियमानुसार 'अ' उपसर्ग के रूप में ज्ञान के साथ जुड़ा है । इस प्रकार अज्ञान शब्द बना है इसके दोनों अर्थ होते हैं । १) अ निषेध वाची अभाव अर्थ में जुडने से अज्ञान मतलब ज्ञान का अभाव अर्थात् सर्वथा ज्ञान का न होना यह ध्वनित होता है।
और दूसरी तरफ दूसरा अर्थ 'अ' अक्षर को अल्पवाची बताकर अल्पार्थक अर्थ में अ प्रयुक्त हुआ है । जिससे अज्ञान शब्द बना है। अतः अज्ञान का अर्थ अल्प ज्ञान यह अर्थ भी ध्वनित होता है।
किसी भी छोटे से छोटे जीव में भी ज्ञान का सर्वथा अभाव तो सिद्ध हो ही नहीं सकता है । क्योंकि ज्ञान का सर्वथा अभाव अजीव-जड-पुद्गल पदार्थों में ही होता है। जीव में तो वैसे भी सम्भव नहीं है। फिर भी अजीव जड पुद्गल पदार्थ अज्ञानी है ऐसा भाषाकीय व्यवहार भी नहीं होता है । जीव अज्ञानी है ऐसा व्यवहार हो सकता है । एक नियम ऐसा भी है कि जिसमें जो रहता है उसी में कालान्तर में या अन्य अपेक्षा से उसका अभाव भी रह सकता है । अभाव का भी आधार पात्र वही होगा जो भाव का आधार पात्र बना हो । इस नियमानुसार ज्ञान का आधार पात्र जो जीव हैं उसी में कालान्तर में कर्मादि की प्रचुरता के कारण अज्ञान भी रहेगा । जबकि जीव द्रव्य चेतनात्मा ज्ञानमय-ज्ञानपूर्ण ही है । फिर भी अज्ञानी कैसे कहना? अतः यहाँ पर भिन्न भिन्न अपेक्षाओं से वाच्य बनाया है । इसमें ज्ञानावरणीय कर्म की प्रचुरता के कारण, आवरण रूप आच्छादक बन जाने से आत्मा का ज्ञानगुण ढक जाता है । अनादि-अनन्त कालीन ऐसी त्रैकालिक शाश्वतता के कारण आत्मा सदा नित्य शाश्वत द्रव्य है । अतः कदापि सर्वथा आत्मा के ज्ञान का अभाव तो हो ही नहीं सकता है । हाँ, जरूर ज्ञानावरणीय कर्म आत्मा पर छा जाता है । गाढ आवरण बन जाता है । जैसे सूर्य पर गाढ काले घने बादलों के छा जाने से जो अन्धकार छा जाता है वह भी रात्री के अन्धेरे के सामने हजारों गुना कम है । फिर भी ऐसी स्थिति में... जो
३६६
आध्यात्मिक विकास यात्रा