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________________ प्राप्ति होती है । ऐसी उनकी दी गई सफाई कहाँ तक उचित लगती है ? क्या यज्ञ के नाम पर किसी भी प्रकार की हिंसा की जाय तो कहाँ तक उचित है ? पापादि अधर्म को भी धर्म के नाम की पुष्टि मिल जाएगी। फिर लोग धर्म के ओठे के नीचे अधर्म ही ज्यादा करेंगे। मान्यता सम्यग् कैसे होगी? . ख्रिस्ती धर्म के पवित्र ग्रंथ बाइबिल में भी Thou shall not kill at all यह आज्ञा दी गई है। किसी भी जीव को मत मारो । एक तरफ बाइबिल को पवित्र धर्मग्रन्थ मानना और दूसरी तरफ उसकी आज्ञा बिल्कुल ही न मानना, इतना ही नहीं, सर्वथा विपरीत वर्तन करना यह कहाँ तक उचित है ? ख्रिस्तियों के पादरी-आदि धर्मगुरु भी हो या सामान्य जनता भी हो वे सभी एक रूप से, समानरूप से मांसाहार करते हैं। मांस कहाँ से प्राप्त होता है? क्या पेड पौधों से मांस मिलता है? कि पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा से मिलता है? गाय-भैंस, बैल-बकरियाँ आदि पंचेन्द्रिय-बडे प्राणियों की हत्या हिंसा करके उनके शरीर से ही मांस मिल सकता है । यह हत्या भी सामान्य प्रकार की नहीं होती । बडी क्रूर-कठोर एवं निर्मम तरीकों से हत्या की जाती है । वह आज के विज्ञान के यान्त्रिक युग में आधुनिक स्वयंसंचालित यन्त्रों से बहुत बड़े पैमाने पर बहुत ज्यादा तादात् में हजारों लाखों मूक पशुओं की हिंसा की जाती है। फिर उनका मांस खाया जाता है । यह कहाँ तक उचित है ? जब बाइबिल पवित्र धर्म ग्रन्थ में कहीं मांसाहार करने के लिए लिखा ही नहीं है तो फिर उसकी आज्ञा के विरुद्ध निरर्थक ऐसी हिंसादि करते ही जाना, और खाते ही जाना यह कहाँ तक उचित है ? __ इस्लाम में भी कुराने शरीफ वैसी. आज्ञा नहीं दे रहा है। मांस खाने की आज्ञा–आदेश नहीं दिया है, तो फिर मुस्लिमों में इतनी व्यापक हिंसा कैसे बढी ? क्यों बढी? फिर वह भी धर्म के नाम पर चल रही है। कुरान में कहीं भी पशु-बकरे-बकरी-गाय-भैंसादि के मारने की आज्ञा नहीं दी है । न ही मांसाहार करने का अल्लाह-खुदा का आदेश-उपदेश कुछ भी नहीं है फिर भी निरर्थक इतने बडे व्यापक प्रमाण में घोर हिंसाचार की प्रचलितता इस्लाम में सर्वत्र कहाँ से आई? ___ इस तरह विविध धर्मों-दर्शनों में सम्यग-शुद्ध स्वरूप न हो तो वे सम्यग् कैसे कहलाएंगे? मिथ्या ही कहलाएंगे । और उनके वास्तविक-यथार्थ रहस्यों को जनता के सामने उजागर करना चाहिए । अन्यथा मिथ्या भाव की ही वृद्धि होती रहेगी। "मिथ्यात्व" - प्रथम गुणस्थान ३६५
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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