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लोकायतिक चार्वाक जो सर्वथा नास्तिक है । नयदृष्टि से पूर्णपुरुष के पैर के स्थान पर है । यह रहस्य गुरुदेव की अमृतवाणी से समझकर आनंद लूटना चाहिए । आत्मानुभव के बिना सब झूठा है। ..
नमि जिनेश्वररूपी सर्वज्ञ पूर्ण पुरुष के उत्तमांग मस्तिष्क पर स्थापित किया गया है । जैन दर्शन की आंतरिक दृष्टि आत्मा संबंधी आध्यात्मिक उत्तम है और बाह्य दृष्टि से शारीरिक भी उत्तम है । चित्र में बताए तदनुसार नमि जिन जो सर्वज्ञ पूर्ण पुरुष है उनके मस्तिष्क स्थानपर जैन दर्शन, दोनों चरण युगल पर सांख्य योगदर्शन, उदर पर चार्वाक,
और दोनों हाथों पर बौद्ध और वेदान्त मीमांसक । इस तरह षड्दर्शनों की स्थापना करके अब संयुक्त सम्मिलित स्वरूप देखने से अनेकान्त की विचारधारा. से सभी पदार्थों का सम्यग् स्वरूप स्पष्ट होता है । इससे उपासक-साधक को साधना में आनन्द आएगा। जिनेश्वर पूर्ण पुरुष में छहों दर्शनों का न्यास करके सम्मिलित सापेक्षभाव से देखने पर कोई मिथ्या दर्शन, और कोई सम्यग दर्शन ऐसा भेद ही नहीं रहता है। सभी के प्रति सद्भाव पैदा होता है। _ 'नदियाँ सभी स्वतंत्र हैं, उनमें समुद्र नहीं है । लेकिन समुद्र में नदियाँ जरूर सम्मिलित हैं । एकरूप हैं । इसी तरह सभी स्वतंत्र दर्शनों में एकान्त-एक नय की विचारधारा होने से पूर्णता नहीं है । जबकि जैन दर्शन समुद्रसमान पूर्ण दर्शन है। सभी नयों का सापेक्षिक रूप है । सप्तभंगीमय स्याद्वाद युक्त होने से समुद्र समान विशाल दर्शन है । जैसे समुद्र में सभी नदियाँ मिल जाती है ठीक वैसे ही जैन दर्शन में सभी दर्शन मिल जाते हैं। सभी अपेक्षाएँ-स्याद् शब्द से इसमें समा जाती हैं । उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य तीनों रूपों से संयुक्त रूप में पदार्थ का प्रतिपादन सर्वज्ञ पूर्ण पुरुषों ने किया है। दर्शनों की विरोधाभासी विचारधारा
कई दर्शन अपने ही दर्शन में मत में जिस प्रकार के सिद्धान्तों की प्ररूपणा करते हैं और फिर उन्हें चरम सत्य की मुहर लगाने जाते हैं लेकिन एक सिद्धान्त के विपरीत दूसरा सिद्धान्त जब प्रतिपादित करते हैं तब परस्पर विरोधाभासी विचारणा बन जाती है। जो सामान्य जनता को गुमराह करनेवाली बन जाती है । उदाहरण के लिए... कुछ अंशों को किसी दर्शन के परिप्रेक्ष्य में देखें
१) “ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या 'ब्रह्म' एक ही तत्त्व सत्य और शेष 'जगत्' तत्त्वादि सर्व मिथ्या है ऐसा कह कर अद्वैतवेदान्त वादियों ने एक ब्रह्म तत्त्व को ही स्वीकार
"मिथ्यात्व" - प्रथम गुणस्थान
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