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________________ . INDIAN . . शराबी के जैसा मोहनीय कर्म मोहनीय कर्म को समझने के लिए शास्त्रकार महापुरुषों ने उपमा के दृष्टान्त से समझाने की कोशिष करते हुए कहा है कि- शराबी के जैसा यह मोहनीय कर्म है । जैसे एक आदमी शराब पीता है। शराब सडी गली चीजों में से तथा सडाने की प्रक्रिया आदि से बनाई जाती है । ऐसी शराब को पीने से मानव के मन बुद्धि पर उन्माद जैसा असर होता है। उसकी बोल-चाल रहन-सहन क्रिया-प्रवृत्ति सब विपरीत हो जाती है । यह तो संसार में प्रत्यक्ष सिद्ध ही है और सभी के आँखों के सामने की प्रत्यक्ष बात है कि... शराब पीनेवाला उल्टा बोलता है, गाली-गंदे शब्द बोलता है। अत्यन्त हल्के अपशब्द बोलता है। वैसी गन्दी हरकतें-चेष्टाएं करता है। उसकी मति-बुद्धि मदिरा से आविष्ट हो जाती है। अतः ऐसा शराबी, घर में आकर माँ को पत्नी कहता है और पत्नी को माँ कहकर बुलाता है । इतना ही नहीं उनके साथ वैसा व्यवहार करता है । माँ के साथ पत्नी जैसा व्यवहार करने लग जाय तो कितना बडा अनर्थ होता है, और पत्नी के पैर पडना, आशीर्वाद मांगना आदि माँ के साथ करने जैसा व्यवहार करने लग जाय तो कितना गलत-विपरीत-हास्यास्पद एवं घृणास्पद लगता है। पिता को गाली देने लगता है और नोकर को पिता मान कर पैरों में पड़ने लग जाता है । यह सब शराब की असर से ग्रस्त होकर करता है सारा व्यवहार बोल-चालादि सर्वथा विपरीत-उल्टा करने लगता है। इस तरह बार-बार शराब पीते रहने से शराबी जो व्यसनग्रस्त-व्यसनों का गुलाम बन जाता है वह फिर भाषा-व्यवहारादि में भी वैसा ही विपरीत वृत्तिवाला बन जाता है। ठीक वैसी ही दशा मोहनीय कर्म बांधे हए जीव की है। यह मोहग्रस्त जीव भी सर्वथा अपनी बोल-चाल भाषा, व्यवहार आचरणादि सब कुछ विपरीत ही कर बैठता "मिथ्यात्व" - प्रथम गुणस्थान ३४९
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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