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________________ फिर आत्मा वैसे कर्म उपार्जन करती है फिर कर्म के बंधन में लिपटती है । फिर कर्म के उदय से वैसी प्रवृत्ति और फिर वैसे कर्मों का बंध । इस तरह संसार में यह विषचक्र चलता ही रहता है । इस तरह आत्मा गुण युक्त होते हुए भी कर्म दोषयुक्त है । और कर्म दोषयुक्त होते हुए भी गुणवान है । जिस तरह एक ही सिक्के की दोनों बाजू हैं वैसे ही आत्मा भी गुण-दोष दोनों से ग्रस्त है । संसारी अवस्था में अनन्तकाल में एक दिन भी चेतनात्मा ऐसी नहीं रही जबकि ... वह कर्मरहित रही हो । कर्मरहित यदि आत्मा होती तो उसी दिन मोक्ष कहा जाता । क्योंकि एक मात्र मोक्ष ही ऐसा स्थान है जहाँ आत्मा कर्मरहित होती है । इसलिए कर्मरहितपना और मुक्ती दोनों एक साथ ही रहते हैं । या ऐसे कहिए कि कर्मरहित अवस्था का नाम ही मोक्ष है और मोक्ष का नाम ही आत्मा की कर्मरहित अवस्था I इस सिद्धान्त के आधार पर ... यह स्पष्ट होता हैं कि... संसार में आत्मा कभी भी कर्मरहित रही ही नहीं है। जैसे सोना जब भी खान में था तब मिट्टी पत्थर आदि के साथ ही था। वैसे ही आत्मा जब संसार में है तब से कर्म सहित - युक्त ही है । इसीलिए कर्मग्रस्त आत्मा संसारी कहलाती है और सर्वथा कर्मरहित आत्मा मुक्त-सिद्ध कहलाती है 1 गुणस्थानों की सीढी जब से आत्मा गुणयुक्त है तब से आत्मा कर्मजनित दोषयुक्त भी है ही । संसारी अवस्था में ऐसा मिश्र स्वरूप है । अब इस आत्मा को समझना चाहिए कि ... गुणों को और ज्यादा प्रकट करना और कर्म दोषों को कम करना यही धर्म-कर्तव्य समझकर पुरुषार्थ करना चाहिए। ऐसी समझपूर्वक – ज्ञानजागृतिपूर्वक पुरुषार्थ करेंगे तो ही परिणाम आएगा । कार्यसिद्धिं होगी । ऐसे गुणों को प्रकट करने के लिए तथा कर्मदोषों को सर्वथा नष्ट करने के लिए महापुरुषों ने गुणों का स्वरूप दर्शाया है । इसको क्रमशः सुव्यवस्थित करके १४ गुणस्थानकों की व्यवस्था दर्शायी है । इन १४ गुणों के स्थानों का स्थान एक पर एक-एक के बाद एक इस तरह आगे बढती हुई विकास साधती हुई दिशा को दर्शाते हुए एक सीढि जैसी व्यवस्था की है। इस सीढी में १४ सोपान चौदह गुणों के दर्शाए हैं। जो आत्मा के विकास की अवस्था को सूचित करती है । - ३४२ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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