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________________ १४ गुणस्थान स्वरूप सर्वज्ञ शासनरूप जैन धर्म में सर्वज्ञ भगवन्तों ने गुणों के स्थानस्वरूप १४ सोपान बताए हैं । जिन पर उतरोत्तर विकास साधती हुई आत्मा आगे आगे ऊपर-ऊपर बढती ही जाय ऐसी १४ सोपानों की सीढी दर्शायी गई है। इसका नाम १४ गुणस्थान दर्शाया गया है । सर्वज्ञ भगवन्तों ने आत्मा की कर्मक्षय से जन्य ऐसी विकसित अवस्था को १४ गुणस्थानों पर अग्रसर की है । ऐसे १४ गुणस्थानों के नाम दूसरे कर्मग्रन्थ में इस प्रकार दर्शाए हैं— I मिच्छे सासण मीसे, अविरय देसे पमत्त अपमत्ते । निअट्टि - अनिअट्टि - सुहुमुवसम, खीण- सजोगि- अजोगि गुणा ॥ १) मिथ्यात्व गुणस्थान २) सास्वादन गुणस्थान ३) मिश्र गुणस्थान ४) अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान ५) देशविरति गुणस्थान ६) प्रमत्त संयत गुणस्थान ८) निवृत्ति अपूर्वकरण गुणस्थान ९) अनिवृत्ति - बादर संपराय गुणस्थान १०) सूक्ष्म संपराय गुणस्थान ११) उपशान्तमोह गुणस्थान १२) क्षीणमोह गुणस्थान १३) सयोगी केवली गुणस्थान १४) अयोगी केवली गुणस्थान ७) अप्रमत्त गुणस्थान इस प्रकार के १४ गुणस्थानों का निर्देश सर्वज्ञ भगवंतों ने किया है । इन नामों में . . आत्मा पर लगे कर्मों के आवरण पर आधारित नामकरण है । और आत्मगुण प्रकटीकरण .. की अवस्था के सूचक नाम भी विशेष रूप में हैं । इन पर क्रमशः चढनेवाला मोक्षार्थी - मुमुक्षु - विशेष जीव क्रमशः कर्मक्षय करते करते विकास की यात्रा करते हुए आगे बढता है I यही हमारे जीवन का लक्ष्य बनना चाहिए । प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य केन्द्रीभूत विषय यही है- १४ गुणस्थान स्वरूप । जो आत्माएं विकास साधते हुए आगे बढती ही जाती है । आज दिन तक के अनन्त संसार में जितनी अनन्त आत्माएं मोक्ष में गई हैं वे सब इसी विकास की सीढीस्वरूप १४ गुणस्थानों केही सोपानों पर चढकर ही मोक्ष में गई हैं । चाहे भगवान महावीर स्वामी हो या चाहे आदिनाथ भगवान हो या कोई भी तीर्थंकर भगवान हो ... या कोई भी गणधर भगवान हो, या कोई भी एवं कितने भी आचार्य उपाध्याय तथा साधु - भगवंत हों, या कितनी भी साध्वियाँ क्यों न हो वे सभी अनन्त ही अनन्त काल से जितने भी मोक्ष में गए हैं वे सब गुणात्मक विकास ३३९
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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