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________________ किसी के साथ छल-कपट-माया न माया-कपट करेगा। लोभ दशा बडी करते हुए वह सरलता का व्यवहार भारी बढेगी। काम वासना का कीडा करेगा । निर्लोभ भाव से वह संतोष व्यक्त बनकर ... दुराचारी-व्यभिचारी बनकर करेगा । कषाय वृत्ति नहीं रखेगा। अतः वैसी प्रवृत्ति करेगा। निंदक बनकर किसी के साथ कलह नहीं करेगा। अनेकों की निंदा करेगा। द्वेषी बनकर परनिंदा की कभी भी इच्छा ही नहीं किसी के प्रति वैर-वैमनस्य दुश्मनी करेगा। अतः ईर्ष्या-द्वेष नहीं बढ़ने बढाएगा। ईर्ष्यालु-मत्सरी बनकर देगा। जिससे गुणों को देखने कहने के किसी के उत्कर्ष को सहन ही नहीं कर प्रति अनुराग बढाएगा । द्वेष बढने ही नहीं पाएगा। इस प्रकार सेंकडों दोषों के देगा। अतः वैर-वैमनस्य खडे ही नहीं | आधार पर वह दोषी-दुष्ट बन जाएगा। करेगा। सबके साथ मैत्री भाव रखेगा। सहिष्णु बनेगा। इस तरह गुणात्मक जगत् कैसा होता है और दोषात्मक जगत् कैसा होता है दोनों का स्वरूप अच्छी तरह गुण-दोष समझने पर ख्याल आ जाएगा । गुणवान पुरुषों का आचरण–क्रिया व्यवहारादि सब कैसे होते हैं यह उपरोक्त वर्णन पढने से ख्याल आता है । और दोषी-दुर्गुणी जीवों का व्यवहार संसार कैसा होता है ? उनका आचार-विचार व्यवहार कैसा होता है? इससे भरा हुआ उनका जीवन कैसा होता होगा? उनकी वृत्ति-मनोवृत्ति कैसी होती होगी सबका ख्याल स्पष्ट आएगा। गुण कहाँ से आते हैं? जैसे कुंएं में से पानी आता है ठीक वैसे गुण कहाँ से आते हैं ? इसके उत्तर में कहते हैं कि गुण आत्मा में से ही आते हैं। सुवर्ण-हीरा-रत्नादि जैसे खान में से निकलते हैं वैसे गुणों की खान आत्मा है । अतः दया-करुणा-क्षमा समतादि सभी आत्मा की खान में से ही निकलते हैं । यदि आत्म तत्त्व न मानें और एक मात्र शरीर को ही मानें तो सभी क्षमा-समतादि गुणों के उद्गम का मूल स्रोत भी शरीर को ही मानना पडेगा। मृत शरीर की अवस्था में शरीर पडा ही है। क्या वहाँ क्षमा, समता, दया, करुणा कभी देखी है? उसका व्यवहार भी कभी हुआ है? कभी नहीं। संभव भी नहीं। अतः निश्चित ही क्षमा, समता, दया, करुणादि गुणों का आश्रय स्थान-उद्गम का मूल स्रोत एक मात्र चेतनात्मा ही है। वहीं से प्रकट होकर बाहर के व्यवहार में आते हैं। ३३४ आध्यात्मिक विकास यात्रा
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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