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________________ विज्ञानक्षेत्री ज्ञान से कोई वैज्ञानिक भी बन जाएगा। आधुनिक विज्ञान के सहारे कोई मंगल और गुरु ग्रह की अनेक उडानें भी भर लेगा। समुद्र की गहराई भी माप लेगा। शायद आकाश की ऊँचाई भी माप लेगा। संभव है शायद सबको और सबकुछ पहचान लेगा। परन्तु ... अपने आप को, अपनी अंतरात्मा को पहचानने में आज का मानव असमर्थ ही सिद्ध हुआ है । आज का इन्सान उपग्रह छोड सकता है परन्तु पूर्वग्रह-परिग्रह नहीं छोड सकता है । कदाग्रह दुराग्रह छोड़ने में असमर्थ सिद्ध हआ है । विज्ञान ने विकास की अपेक्षा विनाश की दिशा में अनेक गुनी ज्यादा प्रगति की है । विनाशक-घातक शस्त्रास्त्र बांबादि भयंकर विनाश-प्रलय खडा कर सकते हैं। विज्ञान ने मानव-मानव के बीच सौहार्द-मैत्री-प्रेम नहीं बढाया परन्तु द्वेष—दुश्मनी, बढाई । परिणामस्वरूप तबाही रुक न सकी। धर्म नहीं परन्तु यदि कोई धर्म के नाम पर झनून को लेकर संघर्ष करना है तो वह सच्चा धर्मी नहीं है। इसलिए मात्र धर्म ही पर्याप्त नहीं है । धर्म में भी अध्यात्म ज्यादा उपयोगी एवं उपकारी है। ___परमात्मा महावीर प्रभु ने स्पष्ट कहा है कि... “जो एगं जाणई सो सव्वं जाणइ।" जो एक आत्मा को पहचानता है वह समस्त जगत् को जानता है। परन्तु दुनिया के सब पदार्थों को जानने के पश्चात् भी यदि एक मात्र चेतनात्म तत्त्व को सर्वांग सम्पूर्ण रूप से यदि नहीं पहचान पाया तो वह कुछ भी न जाननेवाला अज्ञानी ही कहलाएगा । ज्ञान किस विषय का है यह जानता है परन्तु ज्ञान स्वयं क्या है? किसका गुण है? वह गुणी कौन-कैसा है ? ज्ञान का उद्गम-स्रोत कहाँ है ? ज्ञानवान्-ज्ञानमय कौन है ? उस आत्मा को उसके सही स्वरूप को नहीं पहचाननेवाला, फिर भले ही वह दुनियाभर का कितना भी जाने, कितने भी विषयों को जाने तो भी क्या? उसकी आत्मा के लिए क्या उपयोग में आएंगे? वह अज्ञानी अल्पज्ञ ही कहलाएगा। . यही कारण है कि...आज बडे से धनाढ्य श्रीमन्त-अरबों पति, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राजा, वैज्ञानिक, सर्वोच्च सत्ताधीश, न्यायाधीश, अव्वल दर्जे के उद्योगपति, या चाहे कुलगुरु आदि बनने के बावजूद भी उनके जीवन में सुख-शान्ति-शाता का नामोनिशान भी नहीं दिखाई देता है। उल्टे दुःख–अशान्ति वेदना-असंतोष ईर्ष्या-राग-द्वेष-कामक्रोधादि सब दिखाई देते हैं । इन्सान विजय पाकर धरती का विजेता बन सकता है परन्तु अपने आप का आत्म विजेता नहीं बन रहा है । आत्म शान्ति के अभाव में दुःखी वैज्ञानिक को भी आत्महत्या करके मरना पडता है। राष्ट्रपति को भी दुःखी होकर मरना पडता है। प्रधानमंत्री को लोग कुत्तों की मौत मार डालते हैं । सर्वोच्च सत्ताधीश, न्यायाधीश को भी
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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