SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के बाद कुछ भी नहीं करना है । सिद्ध और संसार से मुक्ती दोनों में कोई अन्तर-भेद नहीं है। दोनों एक ही सिक्के की दो बाजू हैं । सिद्ध होना अर्थात् संसार से मुक्त होना है, और संसार से मुक्त होना अर्थात् सिद्ध बनना है । दोनों एक ही है । दोनों में कार्य-कारणभाव का संबंध है । संसार से मुक्त होना यह कारण है, और सिद्ध बनना यह कार्य है । अब आप ही सोचिए.... जो कारणरूप प्रक्रिया है उसी को प्रथम करना जरूरी है। और करने के लिए अच्छी तरह उस प्रक्रिया को जानना समझना और भी जरूरी है । जाने बिना करेंगे क्या? और किये बिना जानना क्या काम का? इसलिए जानने के बाद वैसा करना अत्यन्त जरूरी है और करने के लिए सही अर्थ में जानना उससे भी ज्यादा जरूरी है। ___ आखिर संसार से मुक्त होने की प्रक्रिया का सच्चा सम्यग्ज्ञान किसमें से मिलेगा? कहाँ से मिलेगा? वह कौनसा ज्ञान है ? संसार में विषय की दृष्टि से ज्ञान के अनेक प्रकार हैं। अनेक क्षेत्र हैं, शाखाएं हैं । अतः अनेक प्रकार के ज्ञान हैं । जी हाँ, ... एक नजर इन सब प्रकार के ज्ञानों पर करने से पता चलेगा कि इनमें से कौन से ज्ञान कैसे हैं ? विश्लेषण करने पर अच्छी तरह यह ख्याल आएगा। वर्तमान काल में संसार में जो ज्ञान प्रसरा–बढा है उसमें ९५% ज्ञान आजीविकालक्षी है । पेटभरू विद्या के रूप में फैल चुका है। अतः स्पष्ट ही कहावत बन चुकी है कि- Learning is only for earning सीखना-पढना मात्र कुछ धनोपार्जन करने के लिए ही है । आत्मलक्षी ज्ञान तो १% भी दिखना मुश्किल है, जबकि सत्य तो यह है कि... देह जड है । पौद्गलिक है । मृत्यु के बाद यहीं पडा रहेगा। जलकर राख बन जाएगा। और जीवात्मा चेतन है। नित्य-शाश्वत स्थितिवाला-अविनाशी है। सदाकाल रहनेवाला वही ज्ञान का खजाना है। जन्मान्तर-भवान्तर में जाकर पुनः दूसरा शरीर धारण करके रहेगा। जो अनन्तकाल तक सदा रहनेवाला है उसके लिए कुछ भी नहीं करना और जो क्षणिक-नाशवंत पौद्गलिक जड है उसी के लिए सबकुछ करते जिन्दगी बिता देना यह कहाँ तक उचित है ? कितना योग्य है ? अफसोस... __संसार में देहलक्षी ज्ञान, उद्योगलक्षी ज्ञान, आजीविकालक्षी ज्ञान, व्यवहारलक्षी ज्ञान, वर्तमान तकनीकी ज्ञान, विजाणु विज्ञान, शास्त्रज्ञान, व्यापारलक्षी ज्ञान, आदि ज्ञान ने मानव का विकास भले ही किया, अरे ! उसे चाँद तक भी भले ही पहँचा दिया, व्यापार-उद्योग में चतुर बना दिया । राजनीति के ज्ञान को पाकर कोई राजकारण में कुशल मंत्री-प्रधानमंत्री बन गया, आरोग्य विज्ञान के ज्ञान से कोई शरीर के आरपार पहुँच गया, शस्त्रविद्या से कोई दुनिया पर विजय भी पा लेगा, तकनीकि ज्ञान से कोई चाँद पर भी पहुँच जाएगा।
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy