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________________ संबंध । मित्र या शत्र, पत्र से शत्र, पत्नी से पुत्री आदि के अनेक संबंध लेकर या बदलकर पुनः जीव संसार में आता है। फिर उन्हीं राग-द्वेषों काम-क्रोधादि का आश्रय लेकर संसार में काल बिताता है । फिर चला जाता है । बस इस तरह भवनाटक प्रपंच का अन्त ही नहीं आता है । अनादिकाल से यह क्रम चला आ रहा है। और अन्त के अभाव में सतत गतिमान यह संसार सदाकाल चलता ही रहता है । हाँ, कोई एक जीवविशेष समझकर अपने व्यक्तिगत संसार-भवभ्रमणा का अन्त लाकर, नाटक के बीच से निकलकर मोक्ष में चला जाता है । परन्तु संसार का नाटक तो अखण्ड रूप से निरन्तर अनन्तकाल तक चलता ही रहता है। बस इस और ऐसे भयंकर संसार समुद्र से जो जीव बचकर निकल गया वही पुण्यशाली... सर्वोत्तम... सर्वश्रेष्ठ महापुरुष है । वही सिद्ध–बुद्ध मुक्त बनता जी हाँ... भगवान बनना है तो बहुत ही सीधा-सादा और सरल उपाय है— संसार से सदा के लिए पार उतरना । इस संसारचक्र से सदा के लिए छुटकारा पाना । बस फिर आप सिद्ध भगवान बन गए । सिद्ध-बुद्ध-मुक्त परमात्मा बन गए । संसार का कोई भी जीव संसार से सदा के लिए छूटने पर सिद्ध भगवान बन ही जाता है । भावी का भूत में आरोपण करके इसीलिए कहा जाता है कि... जीव ही शिव है। प्रत्येक जीव में शिवत्व पडा है। शास्त्रों में “ अप्पा सो परमप्पा" आत्मा ही परमात्मा कहा गया है । धर्म के क्षेत्र में... बस... संसारचक्र की जाल से छूटने से ज्यादा और कुछ भी अपेक्षित नहीं है। आप आसानी से भगवान बन सकते हैं । हाँ,... यदि यहाँ संसार में रहकर ही (बिना मरे) भगवान बनना है तो अरिहंत-तीर्थंकर भगवान बनना है तो बहुत कुछ करना पडेगा। यह प्रक्रिया इतनी सरल आसान नहीं है । परन्तु सिद्ध बनने के लिए संसार से छुटकारा पाने की प्रक्रिया बहुत ही सरल है । अन्त में जाकर आखिर अरिहंत को भी सिद्ध ही बनना पडता है । हाँ,...सभी अरिहंत नहीं बन सकते हैं । परन्तु सभी भव्यात्मा सिद्ध जरूर बन सकते हैं । फिर भी यदि जिस किसी जीवविशेष की अरिहंत बनने की उत्कृष्ट प्रबल इच्छा हो तो वह विशेष प्रबल पुरुषार्थ करे तो जरूर अरिहंत बन सकता है । फिर भी सिद्ध बनना आसान है । बस ... सदा के लिए संसार से मुक्ति पाइए और सिद्ध-बुद्ध-मुक्त भगवान बनिए। हाँ ... सिर्फ संसार से मुक्त होने की प्रक्रिया ही जाननी, और तदनुरूप आचरण करना बहुत जरूरी है । संसार से मुक्त होना और सिद्ध बनना दोनों एक ही प्रक्रिया है। जी हाँ,...जो कुछ करना है वह सिद्ध बनने के पहले संसार में ही करना है । सिद्ध बनने
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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